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सीता रावण की पुत्री है

रामकथा के प्रतिनायक रावण में बहुत से श्रेष्ठ गुण होते हुये भी उसका एक आचरण ,उसका एक दोष उसकी सारी अच्छाइयें पर पानी फेर जाता है और उसे सबके रोष और वितृष्णा का पात्र बना देता है ।यदि उस पर पर-नारी में रत रहने और सबसे बढ़कर सीता हरण का दोष न होता तो रावण के चरित्र का स्वरूप ही बदल जाता ।वास्तवकता यह है कि सीता रावण की पुत्री है और सीता स्वयंवर से पहले ही वह इस तथ्य से अवगत था।

'जब मै अज्ञान से अपनी कन्या के ही स्वीकार की इच्छा करूं तब मेरी मृत्यु हो."
-अद्भुत रामायण 8-12 .

देवी भागवत पुराण के अनुसार, जब रावण ने मंदोदरी से विवाह करने की इच्छा को व्यक्त किया तब उसे चेतावनी दी गयी थी कि उसकी पहली संतान का पति रावण को मार देगा । इसके बावजूद, रावण ने मंदोदरी से विवाह किया और जब उसकी पत्नी ने उसके लिये लड़की को जन्म दिया, तब उसने नवजात को पिटारे में छुपा दिया और पिटारे को मिथिला भेज दिया था। और इस तरह जनक को सीता प्राप्त हुयी थी।
वासुदेव हिंदी और उत्तर-पुराण, रामायण का जैन रूपांतरण कहता है कि सीता, रावण और मंदोदरी की संतान है, और जब उनके बारे में भविष्यवाणी हुई कि वह रावण और उनके परिवार के अंत का कारण होगी तब उन्हें छोड़ दिया गया।
रावण की इस स्वीकारोक्ति के अनुसार सीता रावण की पुत्री सिद्ध होती है।अद्धुतरामायण मे ही सीता के आविर्भाव की कथा इस कथन की पुष्टि करती है -
दण्डकारण्य मे गृत्स्मद नामक ब्राह्मण ,लक्ष्मी को पुत्री रूप मे पाने की कामना से, प्रतिदिन एक कलश मे कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध की बूँदें डालता था (देवों और असुरों की प्रतिद्वंद्विता शत्रुता में परिणत हो चुकी थी। वे एक दूसरे से आशंकित और भयभीत रहते थे । उत्तरी भारत मे देव-संस्कृति की प्रधानता थी। ऋषि-मुनि असुरों के विनाश हेतु राजाओं को प्रेरित करते थे और य़ज्ञ आदि आयोजनो मे एकत्र होकर अपनी संस्कृति के विरोधियों को शक्तिहीन करने के उपाय खोजते थे।ऋषियों के आयोजनो की भनक उनके प्रतिद्वंद्वियों के कानों मे पडती रहती थी,परिणामस्वरूप पारस्परिक विद्वेष और बढ जाता था)।एक दिन उसकी अनुपस्थिति मे रावण वहाँ पहुँचा और ऋषियों को तेजहत करने के लिये उन्हें घायल कर उनका रक्त उसी कलश मे एकत्र कर लंका ले गया।कलश को उसने मंदोदरी के संरक्षण मे दे दिया-यह कह कर कि यह तीक्ष्ण विष है,सावधानी से रखे।
कुछ समय पश्चात् रावण विहार करने सह्याद्रि पर्वत पर चला गया।रावण की उपेक्षा से खिन्न होकर मन्दोदरी ने मृत्यु के वरण हेतु उस कलश का पदार्थ पी लिया।लक्ष्मी के आधारभूत दूध से मिश्रित होने के कारण उसका प्रभाव पडा।मन्दोदरी मे गर्भ के लक्षण प्रकट होने लगे ।अनिष्ठ की आशंकाओं से भीत मंदोदरी ने,कुरुश्क्षेत्र जाकर उस भ्रूण को धरती मे गाड दिया और सरस्वती नदी मे स्नान कर चली आई।
हिन्दी के प्रथम थिसारस(अरविन्द कुमार और कुसुम कुमार द्वारा रचित) मे भी सीता को रावण की पुत्री के रूप मे मान्यता मिली है ।

SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari

For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed. हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में...

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चेतावनी : मै किसी धर्म, पार्टी, सम्प्रदाय का विरोध या सहयोग करने नही आया हूँ | मै सिर्फ १५,००० बर्ष की सच्ची इतिहास अध्ययन के बाद रखता हूँ | हिन्दू एक ही पूर्वज के संतान है | भविस्य पुराण के अनुसार राजा भोज ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कार्य का बंटवारा किया था | जिसके अनुसार कोई भी अपने योगयता के अनुसार कार्य कर सकता था | कोई भी कोई कार्य चुन सकता था | पूजा करना , सैनिक बनना,खाना बनाना,व्यापार करना ,पशु पालना, खेती करना इत्यादि | ये कालांतर में जाति का रूप लेता गया | हिन्दू के बहुजन समाज (पिछड़ा, अति पिछड़ा, अन्य पिछड़ा, दलित और महादलित ) को सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहा हूँ | योगयता और मेहनत ही उन्नति का साधन है | एक कटु सत्य : यह हैं की मध्य काल में जब वेद विद्या का लोप होने लगा था, उस काल में ब्राह्मण व्यक्ति अपने गुणों से नहीं अपितु अपने जन्म से समझा जाने लगा था, उस काल में जब शुद्र को नीचा समझा जाने लगा था, उस काल में जब नारी को नरक का द्वार समझा जाने लगा था, उस काल में मनु स्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं। जो धर्म सृष्टि के आरम्भ के पहले और प्रलय के बाद भी रहे उसे सनातन धर्म कहते है | सनातन धर्म का आदि और अंत नही है | नया सवेरा