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मनुवाद, उग्रवाद , अलगाववाद और बहुजन

मूल मनुस्मृति १० लाख बर्ष पुराना है | जिसमे
छेड़खानी आज से २८०० साल पहले हुआ था |
मनुवाद के नाम मुगलो ने २० करोड़ से अधिक हिन्दुओ का धर्मान्तरण करवाया |मनुवाद का नाम लेकर ब्राह्मणों को अपराधी और ब्राह्मणों की नृशंस हत्या और लूटपाट और धर्मान्तरण करवाया | ईरान, अफगानिस्तान, बाली और इंडोनेसिया बनाया |
अंग्रेजो ने क्षत्रियो को दलित और गुलाम बनाया | मनुवाद का नाम ले लेकर पाकिस्तान और बांग्लादेश बनाया | कांग्रेस ने एक दलित, महादलित, पिछड़ा और अतिपिछड़ा के नाम से राजनीती चमकाई |
मार्क्सवादी और उनके बुद्धिजीवियों ने माओवाद और नक्सलवाद पैदा करवाया | मार्क्सवादियों ने मनुवाद का नाम ले लेकर बहुजन का धर्मान्तरण करवाया या उग्रवाद बनाया | राजनितिक गुलाम और समाज से बहिस्कृत किया | मनुवाद का विरोध के नाम पर  धर्मान्तरण करवाना या उग्रवाद और देश का विरोध करवाना | धर्मपरिवर्तन के बाद नए राष्ट्र का मांग एक ही साथ देखना चाहिए |इसके बदले बहुजन को ज़िंदा रहने पर नारकीय जिंदगी या उग्रवाद के नाम पर मौत दिया जा रहा है |पूर्वोत्तर (बंगाल, असम ...) और दक्षिणी भारत के राज्यों में विद्रोह और अलगाव पैदा कर लगभग हिन्दू मुक्त करवाया | 
मनुवाद का नाम ले ले कर माओवाद और नक्सलवाद को मार्क्सवादी पार्टी ने १५ से २० राज्यों में अलगाववाद पैदा किया है | जबकि यही बुद्धिजीवी ने पशिम बंगाल पर ३५ साल से अधिक शासन किया लेकिन किसी मज़दूर या दलित का भला नही किया सिर्फ राजनीती चमकाई | दलितों को धर्मान्तरण करवाया या उग्रवादी का ठप्पा लगाके मौत दिया | यह धर्मान्तरण और उग्रवाद का घिनोना खेल अभी भी जारी है |
समाज में झूठी इतिहास पढ़ा नफरत के बीज बोया जा रहा है | मूलनिवासी के नाम पर बहुजन का भटका कर राजनीती चमकाया जा रहा है | जो हिन्दू १०,००० साल से ज्यादा समय से भारत में रहता है विदेशी कह कर समाज में द्वेष और घृणा का जहर घोल जा रहा है|

वेदों में शूद्र का अर्थ कोई ऐसी जाति या समुदाय नही है जिससे भेदभाव बरता जाए
हिन्दू/सनातन/वैदिक धर्म का मुखौटा बने जातिवाद की जड़ भी वेदों में बताई जा रही है और इन्हीं विषैले विचारों पर दलित आन्दोलन इस देश में चलाया जा रहा है |
परंतु, इस से बड़ा असत्य और कोई नहीं है | इस श्रृंखला में हम इस मिथ्या मान्यता को खंडित करते हुए, वेद तथा संबंधित अन्य ग्रंथों से स्थापित करेंगे कि –
१.चारों वर्णों का और विशेषतया शूद्र का वह अर्थ है ही नहीं, जो मैकाले के मानसपुत्र दुष्प्रचारित करते रहते हैं |
२.वैदिक जीवन पद्धति सब मानवों को समान अवसर प्रदान करती है तथा जन्म- आधारित भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं रखती |
३.वेद ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो सर्वोच्च गुणवत्ता स्थापित करने के साथ ही सभी के लिए समान अवसरों की बात कहता हो | जिसके बारे में आज के मानवतावादी तो सोच भी नहीं सकते |
आइए, सबसे पहले कुछ उपासना मंत्रों से जानें कि वेद शूद्र के बारे में क्या कहते हैं  –

यजुर्वेद १८ | ४८
हे भगवन!  हमारे ब्राह्मणों में, क्षत्रियों में, वैश्यों में तथा शूद्रों में ज्ञान की ज्योति दीजिये | मुझे भी वही ज्योति प्रदान कीजिये ताकि मैं सत्य के दर्शन कर सकूं |
यजुर्वेद २० | १७
जो अपराध हमने गाँव, जंगल या सभा में किए हों, जो अपराध हमने इन्द्रियों में किए हों, जो अपराध हमने शूद्रों में और वैश्यों में किए हों और जो अपराध हमने धर्म में किए हों, कृपया उसे क्षमा कीजिये और हमें अपराध की प्रवृत्ति से छुडाइए |
यजुर्वेद २६ | २
हे मनुष्यों ! जैसे मैं ईश्वर इस वेद ज्ञान को पक्षपात के बिना मनुष्यमात्र के लिए उपदेश करता हूं, इसी प्रकार आप सब भी इस ज्ञान को ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र,वैश्य, स्त्रियों के लिए तथा जो अत्यन्त पतित हैं उनके भी कल्याण के लिये दो | विद्वान और धनिक मेरा त्याग न करें |
अथर्ववेद १९ | ३२ | ८
हे ईश्वर !  मुझे ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र और वैश्य सभी का प्रिय बनाइए | मैं सभी से प्रसंशित होऊं |
अथर्ववेद १९ | ६२ | १
सभी श्रेष्ट मनुष्य मुझे पसंद करें | मुझे विद्वान, ब्राह्मणों, क्षत्रियों, शूद्रों, वैश्यों और जो भी मुझे देखे उसका प्रियपात्र बनाओ |
इन वैदिक प्रार्थनाओं से विदित होता है कि –
-वेद में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण समान माने गए हैं |
 -सब के लिए समान प्रार्थना है तथा सबको बराबर सम्मान दिया गया है |
 -और सभी अपराधों से छूटने के लिए की गई प्रार्थनाओं में शूद्र के साथ किए गए अपराध भी शामिल हैं |
 -वेद के ज्ञान का प्रकाश समभाव रूप से सभी को देने का उपदेश है |
-यहां ध्यान देने योग्य है कि इन मंत्रों में शूद्र शब्द वैश्य से पहले आया है,अतः स्पष्ट है कि न तो शूद्रों का स्थान अंतिम है और ना ही उन्हें कम महत्त्व दिया गया है |
इस से सिद्ध होता है कि वेदों में शूद्रों का स्थान अन्य वर्णों की ही भांति आदरणीय है और उन्हें उच्च सम्मान प्राप्त है |
वेदों में शूद्र नाम की कोई  जाति या समुदाय नही है जिससे भेदभाव बरता जाए  |

SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari

For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed. हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में...

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चेतावनी : मै किसी धर्म, पार्टी, सम्प्रदाय का विरोध या सहयोग करने नही आया हूँ | मै सिर्फ १५,००० बर्ष की सच्ची इतिहास अध्ययन के बाद रखता हूँ | हिन्दू एक ही पूर्वज के संतान है | भविस्य पुराण के अनुसार राजा भोज ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कार्य का बंटवारा किया था | जिसके अनुसार कोई भी अपने योगयता के अनुसार कार्य कर सकता था | कोई भी कोई कार्य चुन सकता था | पूजा करना , सैनिक बनना,खाना बनाना,व्यापार करना ,पशु पालना, खेती करना इत्यादि | ये कालांतर में जाति का रूप लेता गया | हिन्दू के बहुजन समाज (पिछड़ा, अति पिछड़ा, अन्य पिछड़ा, दलित और महादलित ) को सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहा हूँ | योगयता और मेहनत ही उन्नति का साधन है | एक कटु सत्य : यह हैं की मध्य काल में जब वेद विद्या का लोप होने लगा था, उस काल में ब्राह्मण व्यक्ति अपने गुणों से नहीं अपितु अपने जन्म से समझा जाने लगा था, उस काल में जब शुद्र को नीचा समझा जाने लगा था, उस काल में जब नारी को नरक का द्वार समझा जाने लगा था, उस काल में मनु स्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं। जो धर्म सृष्टि के आरम्भ के पहले और प्रलय के बाद भी रहे उसे सनातन धर्म कहते है | सनातन धर्म का आदि और अंत नही है | नया सवेरा