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अधर्मी के दश सवाल के जवाब


मै हिन्दू धर्म मानने वालों से बस यह पूछना चाहूँगा

जिस धर्म में पिता अपनी पुत्री से सौ वर्ष से अधिक निरन्तर बलात्कार करे फिर भी भगवान ब्रहमा कहलाये !
उत्तर :
भगवान् ब्रह्मा ने कल्पना से ही संसार बनाया है | ब्रह्मा ने कल्पना से ही सबको पैदा किया है न की सम्बन्ध से इन्होने मानस पुत्र को जन्म दिया है | अतः ब्रह्मा की शक्ति माँ सरस्वती माँ गायत्री और गणेश जी है जिनके सहायता से वो विधान लिखते है | भगवन विष्णु की शक्ति लक्ष्मी है | जो पालन पोषण में सहायता करती है | महदेव की शक्ति कालि है जो शिव को प्रलय संहार में सहायता करती है |
दुर्गा सप्तशती में रहस्य में बताया गया है | माँ सरस्वती की उत्पत्ति माँ महाकाली ने की है |




२ - जिस धर्म में कोइ जो अपनी स्त्री को जुआ में दाव पर लगा कर हार जाये वो फिर भीधर्मराज कहलाये !
उत्तर :जुआ जो समाज में बुराई थी | उसे मिटने के लिए रास्ता बताया है |  धर्मराज युधिष्ठिर ने परिणाम बताया है | धर्म अधर्म सिखाया है |

३ - जिस धर्म में बेटा अपनी निर्दोष
मां को फ़र्सा से हत्या
कर दे वो तुच्छ भगवान का अवतार और
परशुराम कहाये !
उत्तर : पिता का आज्ञा पालन सर्वोपरि बताया है | माँ को फिर जीवित किया गया है | भगवन राम ने भी पिता का आज्ञा माना | 
उत्तर : 
ताड़ना एक (अवधी - संस्कृत) शब्द है । जिसका हिंदी में अर्थ होता है । अनुशासन, शिष्टाचार, मर्यादा (Discipline) या शिक्षा

संस्कृत का एक श्लोक पढ़े :
लालयेत् पंच वर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत्।
प्राप्ते षोडशे वर्षे पुत्रे मित्रवदाचरेत्॥
अर्थ- पाँच वर्ष की अवस्था तक पुत्र को लाड़ करना चाहिए, दस वर्ष की अवस्था तक (उसी की भलाई के लिए) उसे ताड़ना (अनुशासन , Discipline , मर्यादा , शिक्षा ) देना चाहिए और उसके सोलह वर्ष की अवस्था प्राप्त कर लेने पर उससे मित्रवत व्यहार करना चाहिए.
Till the son is five years old one should pamper him. When he crosses five till he becomes 10 he should be spanked. (Tadayet means to spank) in reality those are the years when one needs to discipline him. Line -2 However, when he turns 16, he should be treated like a friend. ( Means he should feel that he is grown up and his opinion matters, which can happen when he is treated like a friend.)

ताड़ना = DISCIPLINE = मर्यादा = अनुशासन = शिक्षा
अब आप श्री राम चरितमानस के पूरी दोहा को पढ़े आपके सामने सत्य खुद ही समझ में आएगा ।
दोहा ।
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल गवाँर शूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥
अर्थ : समुद्र प्रार्थना करते है की आपने हमें शिक्षा (अनुशासन) देकर अच्छा किया । ये आपने मर्यादा (कर्तव्य ) को फिर से स्थापित किया है ।
ढोल गंवार शुद्र पशु और नारी सारे ताड़ना (ताडयेत् , मर्यादा, अनुशासन , Discipline, शिक्षा ) के अधिकारी है ।
English :

Shree Ram you have done well to discipline me | This is guidelines which you have defined again.
A Drum, an Illiterate, Poor people (I would not interpret it as Dalit’s), Animals and Women all have the rights to be disciplined.

५ - जिस धर्म में मलभक्छी सूअर को
भगवान का अवतार
कहा जाये किन्तु एक मान उस सूअर से
भी नीच शुद्र
मनुष्यों को समझा जाये ! फिर भी
ऐसा पाखंडी धर्म उसके
दुष्ट अनुयायियों को समझ में न आये !

उत्तर : जड़ चेतन में परमात्मा का वास है | वराह भगवान् ने राक्षस राज  हिरण्याक्ष का वध किया था | 

६ - जिस धर्म में कुत्ता और सूअर चूहाऔर उस पत्थर की पूजा हो जिस पर कुत्ते टांग उठा कर अपन मुत्र त्यागकरते हैं , वो पत्थर पवित्र है किंत शुद्र मानव की मात्रछाया से ये मेरु पर्वत व नित्यानंद केअसंवैधानिक संतान,विदेशी आर्य ,मनुवादी, ब्रहमणवादी .व देश्द्रोही संघी अशुद्ध अपवित्र हो जांय ! और पवित्रहोने के लिये गायका मुत्र पीयें ! फिर भी ऐसा पाखंडी धर्म उसके दुष्ट अनुयायियों को समझ में न आये !

उत्तर : 

औरंगजेब रोज ढाई मन जनेऊ न जला लेता था तब तक उसे नींद नहीं आती थी l
आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं की ढाई मन जनेऊ एक दिन में जलाने से कितने हिन्दुओं को मारा सताया जाता होगा और कितने बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन किया जाता होगा, कितनी ही औरतों का शारीरिक मान मर्दन किया जाता होगा और कितने ही मन्दिरों तथा प्रतिमाओं का विध्वंस किया जाता होगा |वर्तमान के पाकिस्तान ईरान अफगानिस्तान बंग्लादेश जो भारत के अंग थे मुगलो ने अत्याचार कर धर्मपरिवर्तन करवाया था | आततायी औरंगजेब प्रतिदिन शाम में ढाई मन जनेऊ जलाते थे | जनेऊ पहनने पर यातना देते थे | इसलिए उपनयन संस्कार बंद और मैला चमड़ा के कारोबार में ब्राह्मणो वैश्यों क्षत्रियो को लगाया गया जिससे अछूत बने | हमारे वीर पूर्वज हिन्दू ( ब्राह्मण क्षत्रिय वैस्य शूद्र ) अछूत बने लेकिन धर्म नहीं त्यागा |

लिंग का तात्पर्य प्रतीक से है, शिवलिंग का मतलब है पवित्रता का प्रतीक | दीपक की प्रतिमा बनाये जाने से इस की शुरुआत हुई, बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं | हवा में दीपक की ज्योति टिमटिमा जाती है और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती है इसलिए दीपक की प्रतिमा स्वरूप शिवलिंग का निर्माण किया गया ताकि निर्विघ्न एकाग्र होकर ध्यान लग सके | लेकिन कुछ विकृत मुग़ल काल से कुछ दिमागों ने इस में जननागों की कल्पना कर ली और झूठी कुत्सित कहानियां बना ली और इस पीछे के रहस्य की जानकारी न होने के कारण अनभिज्ञ भोले हिन्दुओं को भ्रमित किया गया

७ - जिस धर्म में एक बंदर तथाकथित
भगवान होकर
पिर्थवी पर रह्ते भी उस से कइ गुना
बडा सूरज को कोइ
फ़ल समझते हुये निगलने या खाने को
सोचे और वह बंदर
भगवान हनुमान कहाये ! फिर भी ऐसा
पाखंडी धर्म उसके
दुष्ट अनुयायियों को समझ में न आये !

उत्तर : भगवान हनुमान रुद्रावतार है | वो अति सूक्ष्म और और अति विशाल रूप ले सकते है | 

८ - जिस धर्म में दो भगवान विष्णु और
शंकर संभोग करने
लगे और तीसरा भग्वान भी अयप्पा के
रूप में जनम ले फिर
भी ऐसा पाखंडी धर्म उसके दुष्ट
अनुयायियों को समझ में न
आये !

उत्तर : ब्रह्मा ने श्रष्टि की उत्पति कल्पना से की है न की सम्भोग से | 
पुरुषलिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक
इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक
और नपुंसकलिंग का अर्थ हुआ ..नपुंसक का प्रतीकअब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य के जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है..तो वे बताये ”स्त्री लिंग ”’के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए
और वो खुद अपनी औरतो के लिंग को बताये फिर आलोचना करे



क्या ब्राह्मण ने जाती प्रथा प्रारम्भ किया ?
उत्तर : नहीं
राजा भोज ने हिन्दू को कार्य बांटा था जिसे मुगलो ने चालाकी से जाती प्रथा बना दिया | अंग्रेज , कांग्रेस और वामपंथी बुद्धिजीवी ने जहर घोल कर विषाक्त कर दिया |
क्या आप बता सकते हो की आप के पूर्वज किस जाती से थे शायद नहीं मुग़ल के पहले जाती प्रथा नहीं थी | एक बात तो पक्की है आप के पूर्वज वीर हिन्दू थे कायर नहीं और गुलाम नहीं | अरब वाले सिर्फ कनवर्टेड मुस्लिम को गुलाम मानते है | भारत में बहुत सारे राज्य थे | जिसमे मुग़ल का शासन नहीं था | स्वतंत्र थे | कभी मुग़ल की गुलामी नहीं की | जाती प्रथा के लिए सब जिम्मेवार है | केवल ब्राह्मण नहीं | छुवा छूट सिर्फ ब्राह्मण नह करते थे | सब हिन्दू करते थे | कसाई और गंदगी पेशा के कारन सब छुवा छूत करते थे | मुग़ल ने इनको प्रताड़ित करके चंवर वंशीय को चमड़ा छिलवा कर अपमानित किया | हिन्दू तो चमड़े का इस्तेमाल नहीं करते थे | खड़ाऊं करते थे | मंदिर में आज भी बेल्ट जूता खोल के जाते है |
१० - जिस धर्म में लिग और योनि
पूजी जाये
ऐसे धर्म को मानने वालो पर धिक्कार
है ऐसे धर्म पर थू है।

उत्तर :
लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह ,प्रतीक होता है
जबकी जनर्नेद्रीय को संस्कृत मे शिशिन कहा जाता है
शिवलिंग
शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक
पुरुषलिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक
इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक
और नपुंसकलिंग का अर्थ हुआ ..नपुंसक का प्रतीकअब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य के जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है..तो वे बताये ”स्त्री लिंग ”’के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए
और वो खुद अपनी औरतो के लिंग को बताये फिर आलोचना करे

मनुष्ययोनि ”पशुयोनी”पेड़-पौधों की योनि”’पत्थरयोनि”
योनि का संस्कृत में प्रादुर्भाव ,प्रकटीकरण अर्थ होता है..जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है..कुछ धर्म में पुर्जन्म की मान्यता नहीं है ..इसीलिए योनि शब्द के संस्कृत अर्थ को नहीं जानते है जबकी हिंदू धर्म मे 84 लाख योनी यानी 84 लाख प्रकार के जन्म है अब तो वैज्ञानिको ने भी मान लिया है कि धरती मे 84 लाख प्रकार के जीव (पेड, कीट,जानवर,मनुष्य आदि) है…
मनुष्य योनी पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनि होता है..अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनि शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता है…

SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari

For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed. हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में...

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चेतावनी : मै किसी धर्म, पार्टी, सम्प्रदाय का विरोध या सहयोग करने नही आया हूँ | मै सिर्फ १५,००० बर्ष की सच्ची इतिहास अध्ययन के बाद रखता हूँ | हिन्दू एक ही पूर्वज के संतान है | भविस्य पुराण के अनुसार राजा भोज ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कार्य का बंटवारा किया था | जिसके अनुसार कोई भी अपने योगयता के अनुसार कार्य कर सकता था | कोई भी कोई कार्य चुन सकता था | पूजा करना , सैनिक बनना,खाना बनाना,व्यापार करना ,पशु पालना, खेती करना इत्यादि | ये कालांतर में जाति का रूप लेता गया | हिन्दू के बहुजन समाज (पिछड़ा, अति पिछड़ा, अन्य पिछड़ा, दलित और महादलित ) को सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहा हूँ | योगयता और मेहनत ही उन्नति का साधन है | एक कटु सत्य : यह हैं की मध्य काल में जब वेद विद्या का लोप होने लगा था, उस काल में ब्राह्मण व्यक्ति अपने गुणों से नहीं अपितु अपने जन्म से समझा जाने लगा था, उस काल में जब शुद्र को नीचा समझा जाने लगा था, उस काल में जब नारी को नरक का द्वार समझा जाने लगा था, उस काल में मनु स्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं। जो धर्म सृष्टि के आरम्भ के पहले और प्रलय के बाद भी रहे उसे सनातन धर्म कहते है | सनातन धर्म का आदि और अंत नही है | नया सवेरा