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नया सवेरा की चुनौती

ॐ श्री गणेशाय नमः ।
नया सवेरा । सभी पाखंडी ब्राह्मण , मार्क्सवादी बुद्धिजीवी और तमाम धर्मान्तरण करने वाले ठेकेदार को खुली चुनौती देता है ।मूलनिवासी शब्द को सत्य साबित करे ।  जो वेद में छूत - अछूत को साबित करे और भारत के न्यायालय के फैसले को गलत साबित करे । जो वाल्मीकि रामायण , मनुस्मृति , महाभारत और कुछ ग्रंथो में मिलावट को गलत साबित करे । नया सवेरा सभी धूर्त और पाखंडियो की घोर निंदा करता है । जिसने परमात्मा के अंस को छुत - अछूत और नीच वर्ग कहता है ।

नया सवेरा । चुनौती देता है की वेद में कही भी शुद्र नाम की कोई जाति का वर्णन हो । वेद पांच प्रमुख जाति की बात करता है । सुर (देव), असुर (दानव), मनुज (मनुस्य), यक्ष और गन्धर्व जाति का वर्णन वेद में मिलता है । प्रत्येक मनुस्य में चार वर्ण होता है । ब्राह्मण , क्षत्रिय ,वैस्य ,शुद्र जो गुण स्वभाव और कर्म के अनुसार निर्धारित किया जाता था । कोई भी व्यक्ति अपने कर्म से अपना वर्ण परिवर्तन करता था । 

नया सवेरा । उन सभी दलित नेता को चुनौती देता है जो दलित मुस्लिम एकता का नारा देता है । वो साबित करे कि दलित और मुसलमान ने मिलकर पाकिस्तान नही बनाया था  दलितों का नेता पाकिस्तान का प्रथम कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल  नही थे और उन्होंने जिन्ना के साथ मिलकर पाकिस्तान नही बनाया था । मुसलमान ने पाकिस्तान में सारे दलितों को मार दिया । देश तोड़ने वाले नेता जोगेंद्र नाथ मंडल ने दलित को मरवा के खुद भारत क्यों लौट आया था ।  जाने दलित नेता  जोगेंद्र नाथ मंडल  को जिसने जिन्ना के साथ मिलकर पाकिस्तान बनाया था ।  जोगेंद्र नाथ मंडल

जो मूलनिवासी के नाम पर बेगुनाहो को भटका कर उग्रवादी बनाने वाले बुद्धिजीवी को चुनौती देता हूँ । मूलनिवासी  और  दलित- मुस्लिम एकता का नारा देकर पाकिस्तान नही बना था ।  साबित करे हिन्दू भारत के मूलनिवासी नही  है ।

सभी समाज बाँटने वाले को खुली चुनौती देता है । जो मूलनिवासी का झूठ प्रपंच लेकर आया है । 

वैज्ञानिक अध्ययनों, शिलालेखों, जीवाश्मों, श्रुतियों, पृथ्वी की सरंचनात्मक विज्ञान, जेनेटिक अध्ययनों आदि के आधार पर जो तथ्य सामनें आते हैं उनके अनुसार पृथ्वी पर प्रथम जीव की उत्पत्ति गोंडवाना लैंड पर हुई थी जिसे तब पेंजिया कहा जाता था और जो गोंडवाना व लारेशिया को मिलाकर बनता था. गोंडवाना लैंड के अमेरिका, अफ्रीका, अंटार्कटिका, आस्ट्रेलिया एवं भारतीय प्रायद्वीप में विखंडन के पश्चात यहां के निवासी अपने-अपने क्षेत्र में बंट गए थे. जीवन का विकास सर्वप्रथम भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप में नर्मदा नदी के तट पर हुआ जो विश्व की सर्वप्रथम नदी है. यहां बड़ी मात्रा में डायनासोर के अंडे व जीवाश्म प्राप्त होते रहें हैं. भारत के सबसे पुरातन आदिवासी गोंडवाना प्रदेश के गोंड कोरकू समाज की है । प्राचीन कथाओं में यह तथ्य कई बार आता है.
अतः इससे स्पष्ट होता है की मानव की उत्त्पति नर्मदा नदी के तट पर हुआ है । जहाँ भारतीय मानव सभ्यता का विकास हुआ । अतः सभी यहाँ के मूलनिवासी है।आप सच्चाई जानने के लिए वैज्ञानिक तथ्य के लिंक शेयर कर रहा हूँ ।




प्राचीन इतिहास में वर्ण परिवर्तन के उदाहरण

ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र वर्ण की सैद्धांतिक अवधारणा गुणों के आधार पर है, जन्म के आधार पर नहीं | यह बात सिर्फ़ कहने के लिए ही नहीं है, प्राचीन समय में इस का व्यवहार में चलन था | जब से इस गुणों पर आधारित वैज्ञानिक व्यवस्था को हमारे दिग्भ्रमित पुरखों ने मूर्खतापूर्ण जन्मना व्यवस्था में बदला है, तब से ही हम पर आफत आ पड़ी है जिस का सामना आज भी कर रहें हैं|

वर्ण परिवर्तन के कुछ उदाहरण –

(a) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे | परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की | ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है |

(b) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे | जुआरी और हीन चरित्र भी थे | परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये |ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया | (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९)

(c) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए |

(d) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.१.१४)
अगर उत्तर रामायण की मिथ्या कथा के अनुसार शूद्रों के लिए तपस्या करना मना होता तो पृषध ये कैसे कर पाए?

(e) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए | पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४.१.१३)
(f) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४.२.२)

(g) आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए | (विष्णु पुराण ४.२.२)

(h) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए |

(i) विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने |

(j) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए | (विष्णु पुराण ४.३.५)

(k) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.८.१) वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए| इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्य के उदाहरण हैं |

(l) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने |

(m) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना |

(n) राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ |

(o) त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे |

(p) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्र वर्ण अपनाया | विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया |
(q) विदुर दासी पुत्र थे | तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया |

(r) वत्स शूद्र कुल में उत्पन्न होकर भी ऋषि बने (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९) |

(s) मनुस्मृति के प्रक्षिप्त श्लोकों से भी पता चलता है कि कुछ क्षत्रिय जातियां, शूद्र बन गईं | वर्ण परिवर्तन की साक्षी देने वाले यह श्लोक मनुस्मृति में बहुत बाद के काल में मिलाए गए हैं | इन परिवर्तित जातियों के नाम हैं – पौण्ड्रक, औड्र, द्रविड, कम्बोज, यवन, शक, पारद, पल्हव, चीन, किरात, दरद, खश |

(t) महाभारत अनुसन्धान पर्व (३५.१७-१८) इसी सूची में कई अन्य नामों को भी शामिल करता है – मेकल, लाट, कान्वशिरा, शौण्डिक, दार्व, चौर, शबर, बर्बर|

(u) आज भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और दलितों में समान गोत्र मिलते हैं | इस से पता चलता है कि यह सब एक ही पूर्वज, एक ही कुल की संतान हैं | लेकिन कालांतर में वर्ण व्यवस्था गड़बड़ा गई और यह लोग अनेक जातियों में बंट गए |
मै पाखंडी को चुनौती देता हूँ
भगवान् महर्षि वाल्मीकि को डाकू साबित करे ।
रामायण और महाभारत के मूल प्रति में मिलावट कर मनघड़न्त कहानी को भी सत्य साबित करे ।
रामायण और महाभारत की कुछ और मनघडंत कल्पनाएँ जो कोई अस्तित्व तो नहीं रखती पर हिन्दू धर्म की पवित्र संस्कृति को अपमानित जरूर करवाती हैं, देखें –
रामायण:
१. सीता का निर्वासन (सम्पूर्ण उत्तर रामायण ही बाद की कपोल-कल्पना है, जिसका कोई सम्बन्ध वाल्मीकि रामायण से नहीं है।)
२. राम द्वारा शूद्र शम्बूक का वध (उत्तर रामायण से लिया गया एक झूठा प्रसंग है।)
३. हनुमान,बालि,सुग्रीव आदि को बन्दर या वानर मानना। (वे सभी मनुष्य ही थे, हनुमान श्रेष्ठ विद्वान्, अति बुद्धिमान और आकर्षक व्यक्तित्व वाले है।)
४. राम, लक्ष्मण, सीता को शराबी और मांस- भोजी मानना। (जिसका कोई सन्दर्भ मूल रामायण में कहीं नहीं मिलता।)
महाभारत:
१. पांचाल नरेश की कन्या होने से – द्रौपदी पांचाली थी, पांच पतियों की पत्नी होने से नहीं। (यदि कोई इस से उलटा कहे तो वह संस्कृत और इतिहास दोनों से ही अनभिज्ञ है।)
२. श्री कृष्ण की सोलह हजार से भी अधिक रानियाँ मानना। (यह भी भारत वर्ष के अंध काल की एक और मनघडंत कल्पना है।)
3. गुरु द्रोणाचार्य पर एकलव्य का अंगूठा काटना मनघडंत कहानी है । जिसे महाभारत में घालमेल किया है । महर्षि वाल्मीकि की तरह गुरु द्रोणाचार्य को बदनाम किया जा रहा है ।
सैकड़ों शताब्दियों से वेदों के बाद सबसे प्रमुख ग्रन्थ होने के कारण इन ग्रंथों में घालमेल किया गया क्योंकि इन में बिगाड कर के हिन्दुओं को अपने धर्म से डिगाया जा सकता है। हिन्दुओं को धर्मच्युत करने के लिए ही मानव संविधान के प्रथम ग्रन्थ मनुस्मृति में भी घालमेल किया गया।

नया सवेरा :  धर्मांतरण करवाने वाले  सारे दुकानदारों, ठेकेदारो को  धर्म के नाम  पर  निर्दोष  पर किये गया लूटपाट, हिंसा और हत्या  को सही ठहराने  की चुनौती देता है ।


SANT RAVIDAS : 

Hari in everything, everything in Hari
For him who knows Hari and the sense of self, 
no other testimony is needed: the knower is absorbed.

हरि ॐ तत्सत । 

SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari

For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed. हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में...

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चेतावनी : मै किसी धर्म, पार्टी, सम्प्रदाय का विरोध या सहयोग करने नही आया हूँ | मै सिर्फ १५,००० बर्ष की सच्ची इतिहास अध्ययन के बाद रखता हूँ | हिन्दू एक ही पूर्वज के संतान है | भविस्य पुराण के अनुसार राजा भोज ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कार्य का बंटवारा किया था | जिसके अनुसार कोई भी अपने योगयता के अनुसार कार्य कर सकता था | कोई भी कोई कार्य चुन सकता था | पूजा करना , सैनिक बनना,खाना बनाना,व्यापार करना ,पशु पालना, खेती करना इत्यादि | ये कालांतर में जाति का रूप लेता गया | हिन्दू के बहुजन समाज (पिछड़ा, अति पिछड़ा, अन्य पिछड़ा, दलित और महादलित ) को सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहा हूँ | योगयता और मेहनत ही उन्नति का साधन है | एक कटु सत्य : यह हैं की मध्य काल में जब वेद विद्या का लोप होने लगा था, उस काल में ब्राह्मण व्यक्ति अपने गुणों से नहीं अपितु अपने जन्म से समझा जाने लगा था, उस काल में जब शुद्र को नीचा समझा जाने लगा था, उस काल में जब नारी को नरक का द्वार समझा जाने लगा था, उस काल में मनु स्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं। जो धर्म सृष्टि के आरम्भ के पहले और प्रलय के बाद भी रहे उसे सनातन धर्म कहते है | सनातन धर्म का आदि और अंत नही है | नया सवेरा