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SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari

For him who knows Hari and the sense of self,

no other testimony is needed:

the knower is absorbed.

हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में व्याप्त है । जिसने हरि को जान लिया और आत्मज्ञान हो गया और कुछ जानने की जरूरत नही है वो हरि में व्याप्त या विलीन हो जाता है ।

हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरे।
हरि सिमरत जन गए निसतरि तरे।। टेक।।
हरि के नाम कबीर उजागर। जनम जनम के काटे कागर।।१।।
निमत नामदेउ दूधु पीआइया। तउ जग जनम संकट नहीं आइआ।।२।।
जनम रविदास राम रंगि राता। इउ गुर परसादि नरक नहीं जाता।।३।।


त्राहि त्राहि त्रिभवन पति पावन।
अतिसै सूल सकल बलि जांवन।। टेक।।
कांम क्रोध लंपट मन मोर, कैसैं भजन करौं रांम तोर।।१।।
विषम विष्याधि बिहंडनकारी, असरन सरन सरन भौ हारी।।२।।
देव देव दरबार दुवारै, रांम रांम रैदास पुकारै।।३।।

Raidas says, what shall I sing?
Singing, singing I am defeated.
How long shall I consider and proclaim:
absorb the self into the Self?

This experience is such,
that it defies all description.
I have met the Lord,
Who can cause me harm?

Hari in everything, everything in Hari –
For him who knows Hari and the sense of self,
no other testimony is needed:
the knower is absorbed.

— Ravidas

SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari

For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed. हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में...

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चेतावनी : मै किसी धर्म, पार्टी, सम्प्रदाय का विरोध या सहयोग करने नही आया हूँ | मै सिर्फ १५,००० बर्ष की सच्ची इतिहास अध्ययन के बाद रखता हूँ | हिन्दू एक ही पूर्वज के संतान है | भविस्य पुराण के अनुसार राजा भोज ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कार्य का बंटवारा किया था | जिसके अनुसार कोई भी अपने योगयता के अनुसार कार्य कर सकता था | कोई भी कोई कार्य चुन सकता था | पूजा करना , सैनिक बनना,खाना बनाना,व्यापार करना ,पशु पालना, खेती करना इत्यादि | ये कालांतर में जाति का रूप लेता गया | हिन्दू के बहुजन समाज (पिछड़ा, अति पिछड़ा, अन्य पिछड़ा, दलित और महादलित ) को सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहा हूँ | योगयता और मेहनत ही उन्नति का साधन है | एक कटु सत्य : यह हैं की मध्य काल में जब वेद विद्या का लोप होने लगा था, उस काल में ब्राह्मण व्यक्ति अपने गुणों से नहीं अपितु अपने जन्म से समझा जाने लगा था, उस काल में जब शुद्र को नीचा समझा जाने लगा था, उस काल में जब नारी को नरक का द्वार समझा जाने लगा था, उस काल में मनु स्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं। जो धर्म सृष्टि के आरम्भ के पहले और प्रलय के बाद भी रहे उसे सनातन धर्म कहते है | सनातन धर्म का आदि और अंत नही है | नया सवेरा