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वाल्मीकि जाति

श्री गणेश ।
नया सवेरा वाल्मीकि जाति समुदाय के बारे में सत्य रख रहा है।

यह बाल्मीकि संप्रदाय के साथ भ्रमित होने की नहीं है।वाल्मीकि (बाल्मीकि जाति  ) सम्प्रदाय आज भारत के एक दलित समुदाय है। वे ऐतिहासिक रूप से भारतीय समाज में बहिष्कार और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है, और अक्सर दलित विरोधी हिंसा और अन्य जातियों के सदस्यों द्वारा दमन से प्रभावित हैं।
वाल्मीकि समुदाय और वैदिक काल
भगवान वाल्मीकि के पिता का नाम वरुण और मां का नाम चार्षणी था। वह अपने माता-पिता के दसवें पुत्र थे। उनके भाई ज्योतिषाचार्य भृगु ऋषि थे। महर्षि कश्यप और अदिति के नौवीं संतान थे पिता वरुण। वरुण का एक नाम प्रचेता भी है, इसलिए वाल्मीकि प्राचेतस नाम से भी विख्यात हैं।
मत्स्य पुराण में भगवान वाल्मीकि को भार्गवसप्तम् नाम से स्मरण किया जाता है, तथा भागवत में उन्हें महायोगी कहा गया है। सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह द्वारा रचित दशमग्रन्थ में वाल्मीकि को ब्रह्मा का प्रथम अवतार कहा गया है।
परम्परा में महर्षि वाल्मीकि को कुलपति कहा गया है। कुलपति उस आश्रम प्रमुख को कहा जाता था जिनके आश्रम में शिष्यों के आवास, भोजन, वस्त्र, शिक्षा आदि का प्रबंध होता था। वाल्मीकि का आश्रम गंगा नदी के निकट बहने वाली तमसा नदी के किनारे पर स्थित था।

https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BF

वाल्मीकि समाज और मध्य वैदिक काल
वाल्मीकि सम्प्रदाय का दावा है कि वे लेखक वाल्मीकि रामायण जो कभी महर्षि वाल्मीकि को लिखने का श्रेय दिया जाता है उसमे ब्राह्मणों द्वारा बदलाव किया गया है । हालांकि अन्य लोगों का दावा रामायण की वर्तमान संस्करण ब्राह्मणों द्वारा किए गए मूल काम की एक विकृति है।
(Stephen Jacobs. 2010. Hinduism Today: Page 117)
जैसा नया सवेरा पहले ही बता चूका है की २८०० साल पहले मनुस्मृति , रामायण, माहाभारत और कुछ स्मृति में बदलाव किये गये थे । ये आज के वाल्मीकि समाज के पूर्वज द्वारा भी लिखित हो सकते है । उस समय तक ये वाल्मीकि समाज  ब्राह्मण और क्षत्रिय ही थे ।   जिससे पूजा का जन्मजात अधिकार उस समय के तथाकथित ब्राह्मण को प्राप्त हुए । क्षत्रिय , वैश्य शूद्र को वंचित रहना पड़ा था । जिसे भगवन बुद्ध ने २५०० बर्ष पूर्व ब्राह्मणवाद का अंत किया । शंकराचार्य ने ८०० बर्ष पूर्व वैदिक परंपरा की पुनःस्थापना किया था ।

नया सवेरा वाल्मीकि समुदाय के दावे को सच मान रहा है । क्योंकि महर्षि वाल्मीकि की डाकू रत्नाकर होने की कहानी पंजाब और हरियाणा उच्च न्यालय ने गलत बता दिया है । अतः नया सवेरा महर्षि वाल्मीकि से क्षमा और उनके संतान वाल्मीकि समुदाय से करबद्ध हो क्षमा मांगता है ।
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायलय का फैसला देखे |
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Maharishi-Valmiki-was-never-a-dacoit-Punjab-Haryana-HC/articleshow/5960417.cms
मध्य वैदिक काल मे ये राजवंशी, क्षत्रिय और ब्राह्मण थे । जाति व्यवस्था जन्म के अनुसार मनुस्मृति में बदलाव के बाद हुआ था । अतः ये समाज में प्रतिष्ठित वर्ग थे ।

वाल्मीकि समाज और मुग़ल काल
 मुग़ल काल में ये बहुत कुचल दिए गये थे । ये वाल्मीकि मुनि के वंसज होने के कारन धर्म इन्होंने नहीं त्याग किया । इनका राजपाट , घर परिवार सब बिखर गया । इनको जो भी खाने देता या सहायता करता था । उसपर भी मुग़ल जुल्म करते थे । ये हमारे हिन्दू धर्म के स्थापक और रक्षक थे । समाज मुग़ल के भय से इनका सहायता करने से डरते थे । इनपर जुल्म जितना हुआ है । उतना जुल्म इतिहास में कभी देखने को नहीं मिला । मुग़ल ने इन समाज को बहुत ही नुकसान पहुँचाया है ।











मैंने प्रमाण के लिए डॉ विजय सोनकर शास्त्री की लिखी किताब हिन्दू वाल्मीकि जाति का कुछ पेज का स्क्रीन शॉट भी अपलोड कर रहा हूँ ।

आज वाल्मीकि समाज
वाल्मीकि समाज एक बार फिर जग गया है । लेकिन अभी कुछ भटकाव जरूर नजर आ रहा है । इन्होंने १००० साल गुलामी के बाद नयी पीढ़ी आधुनिक हो गयी है । मार्क्सवादी विचारधारा से ग्रसित है । मुग़ल और अंग्रेज के द्वारा लिखी गयी इतिहास से भ्रमित है । अपना अतीत भूल गये है । जिनके पूर्वज ने हिन्दू धर्म की नीव रखी थी । इनके ही पूर्वज ने हिन्दू धर्म की रक्षा की है । ये आज इसी से विमुख हो रहे है । आज के युवा मार्क्सवादी राजनीती के कारन खुद को ब्राह्मण और क्षत्रिय होना तो दूर ये खुद को दलित और कायर समझने लगे है । ये अपना स्वर्णिम इतिहास भूल गये है । बस इन्हें १००० बर्ष की गुलाम की जिंदगी याद रह गयी है । ये खुद भूल गये है की इनके ही पूर्वज ने धर्मक ग्रन्थ लिखे थे । इनके ही पूर्वज राजवंश के थे । जिसके कारन इन्हें जुल्म का ज्यादा शिकार होना पड़ा | अपने आप को खुद छोटा और दलित समझने लगे है । ये जो ८०० बर्ष पूर्व तक खुद ब्राह्मण और क्षेत्रीय थे । आज अपने आपको मूलनिवासी और वर्तमान में जो ब्राह्मण और क्षत्रिय को विदेशी होना समझ रहे है । मार्क्सवादी बुद्धिजीवी ने इन्हें रास्ते से भटका दिया है । ये द्वन्द की राजनीती का शिकार हो रहे है । इन्हें फिर से समाज में सम्मान के साथ स्थापित करना होगा । जिसके पूर्वज ने वैदिक धर्म दिया हो और उसी धर्म में इन्हें सबसे छोटा स्थान मिला हो ये हिन्दू धर्म की विडंबना और कलंक भी है । इन्हें खुद को जानना होगा । समाज को भी इनकी सचाई को मानना होगा ।
शुभम अस्तु । ॐ शांति ॐ । हरि ॐ तत्सत ।








SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari

For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed. हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में...

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चेतावनी : मै किसी धर्म, पार्टी, सम्प्रदाय का विरोध या सहयोग करने नही आया हूँ | मै सिर्फ १५,००० बर्ष की सच्ची इतिहास अध्ययन के बाद रखता हूँ | हिन्दू एक ही पूर्वज के संतान है | भविस्य पुराण के अनुसार राजा भोज ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कार्य का बंटवारा किया था | जिसके अनुसार कोई भी अपने योगयता के अनुसार कार्य कर सकता था | कोई भी कोई कार्य चुन सकता था | पूजा करना , सैनिक बनना,खाना बनाना,व्यापार करना ,पशु पालना, खेती करना इत्यादि | ये कालांतर में जाति का रूप लेता गया | हिन्दू के बहुजन समाज (पिछड़ा, अति पिछड़ा, अन्य पिछड़ा, दलित और महादलित ) को सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहा हूँ | योगयता और मेहनत ही उन्नति का साधन है | एक कटु सत्य : यह हैं की मध्य काल में जब वेद विद्या का लोप होने लगा था, उस काल में ब्राह्मण व्यक्ति अपने गुणों से नहीं अपितु अपने जन्म से समझा जाने लगा था, उस काल में जब शुद्र को नीचा समझा जाने लगा था, उस काल में जब नारी को नरक का द्वार समझा जाने लगा था, उस काल में मनु स्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं। जो धर्म सृष्टि के आरम्भ के पहले और प्रलय के बाद भी रहे उसे सनातन धर्म कहते है | सनातन धर्म का आदि और अंत नही है | नया सवेरा