पंजाब के सिख ब्राह्मणों के बारे में बहुत कुछ अपमानजनक कहते सुनते पाए जाते हैं | फिल्मों में ब्राह्मणों को या तो कोमेडी पात्र दिखाया जाता या चुटकुले बनाये जाते हैं | फेसबुक पर कई पेज ग्रुप हैं जिनके नाम का अगर हिंदी में मतलब निकाला जाए तो कुछ ऐसे है “बामणी लगाये ट्राई , जट ने भी बहुत फसाई”, “रंगीन जट , शोकीन बामणी”, और ऐसे ही कई पेज आपको मिल जायेंगे जहाँ पंडितों का मजाक बनाया जाता है | ऐसे ही अक्सर बड़े सिख नेता ब्राह्मण विरोधी ब्यान देते सुने जाते हैं जिनमे इनके सबसे बड़े ग्रंथि अवतार सिंह मक्कड का भी नाम है |
इसका कारण यह कहा जाता है की गंगू नाम के ब्राह्मण ने गुरु के बेटे का पता मुगलों को बताया था | पर ब्राह्मणों से नफरत और इस साज़िश का कारण जानने के लिए थोडा इतिहास में जाना होगा | अक्सर कहा जाता है की सिख गुरु के आगे कश्मीरी पंडितों ने हाथ फैलाये तो गुरु साहिब ने हिंदू धर्म की रक्षा की | हिंदुओं की माँ बहने मुग़ल उठा कर ले जाते थे और हिंदू उन्हें बचा नहीं पाते थे | ऐसे ताने हमें सुनने को मिलते हैं की तुम अब्दाली के आगे छक्के बन जाते थे |
पहले तो में शुरू करूँगा गंगू ब्राह्मण से , गंगू ब्राह्मण ने कभी गुरु को धोखा नहीं दिया था | बल्कि उसने गोबिंद सिंह के बच्चों को अपने घर में शरण दी थी , उनको मुगलों से बचाने के लिए | एक दिन जब गंगू राशन लेने गया तो दुकानदार ने पूछा की गंगू तू अकेला रहता है , इतना राशन क्या करेगा , तो भोले भाले गंगू ने कह दिया की किसी को बताना मत, गुरु के बच्चे मेरे यहाँ छिपे हुए हैं और ऐसे वो बात बाहर फ़ैल गयी |
गंगू ब्राह्मण एक 21 ब्राहमणों की टोली के साथ आया था जिसका नेतृत्व एक कृपा शंकर नाम का ब्राह्मण कर रहा था और सब के सब वीरगति को प्राप्त हुए थे l
गंगू ब्राह्मण उनके खाने पीने का ध्यान रखता था, उसे गुरु साहिबान के शेह्जादों की देखरेख का दायित्व दिया गया था l उसकी चूक केवल इतनी ही थी कि उसके मूंह से एक छिपी रहने वाली बात निकल गई और केवल सिंह नाम सिख ने इसकी मुखबिरी मलेर-कोटला के कोतवाल को दे दी और शेह्जादे तथा माता गूज्जरी जी को गिरफ्तार कर लिया गया l
जिस काल कोठरी में माता गूजरी जी और शेह्जादों को रखा गया था वो पीछे की और से खुली हुई थी जिसके पीछे एक नदी बहती थी l
दिसम्बर का महीना था और कडाके की ठंड थी, फिर भी मोती राम मेहरा नामक एक हिन्दू खत्री (क्षत्रिय) अपनी जान पर खेलकर नदी के मुंहाने से होता हुआ वहां जाकर उन्हें गर्म गर्म दूध पिला कर आता था l बाद में जब इसका भेद खुला तो मोती राम मेहरा को आटा पीसने वाली चक्की के बीच पीसकर मार डाला गया l
गुरु साहिबान के शेह्जादों मलेर कोटला के नवाब द्वारा नृशंस हत्या कर देने के बाद उनके अंतिम संस्कार हेतु कोई भी सिख सामने नही आया था, यह भय था या खौफ यह तो ज्ञात नही परन्तु फिर एक टोडरमल नाम का वैश्य सामने आया जिसने उस समय 7800 स्वर्ण मुद्राएं धरती बिछा कर उतनी भूमि खरीदी जितने पर गुरु साहिबान के शेह्जादों का अंतिम संस्कार हो सके l
आज के समय में 7800 स्वर्ण मुद्राओं की कीमत लगभग 30 मिलियन डॉलर बनती हैं l भारतीय मुद्रा में लगभग 150 करोड़ से 180 करोड़ रूपये बैठती है l परन्तु इस महान अभूतपूर्व सहयोग की भी सिख इतिहास में कोई पूछ नही न ही कहीं लिखा पढ़ाया जाता है l
https://thaluaclub.in/2014/07/22/sikh-and-hindu/
इसका कारण यह कहा जाता है की गंगू नाम के ब्राह्मण ने गुरु के बेटे का पता मुगलों को बताया था | पर ब्राह्मणों से नफरत और इस साज़िश का कारण जानने के लिए थोडा इतिहास में जाना होगा | अक्सर कहा जाता है की सिख गुरु के आगे कश्मीरी पंडितों ने हाथ फैलाये तो गुरु साहिब ने हिंदू धर्म की रक्षा की | हिंदुओं की माँ बहने मुग़ल उठा कर ले जाते थे और हिंदू उन्हें बचा नहीं पाते थे | ऐसे ताने हमें सुनने को मिलते हैं की तुम अब्दाली के आगे छक्के बन जाते थे |
पहले तो में शुरू करूँगा गंगू ब्राह्मण से , गंगू ब्राह्मण ने कभी गुरु को धोखा नहीं दिया था | बल्कि उसने गोबिंद सिंह के बच्चों को अपने घर में शरण दी थी , उनको मुगलों से बचाने के लिए | एक दिन जब गंगू राशन लेने गया तो दुकानदार ने पूछा की गंगू तू अकेला रहता है , इतना राशन क्या करेगा , तो भोले भाले गंगू ने कह दिया की किसी को बताना मत, गुरु के बच्चे मेरे यहाँ छिपे हुए हैं और ऐसे वो बात बाहर फ़ैल गयी |
गंगू ब्राह्मण एक 21 ब्राहमणों की टोली के साथ आया था जिसका नेतृत्व एक कृपा शंकर नाम का ब्राह्मण कर रहा था और सब के सब वीरगति को प्राप्त हुए थे l
गंगू ब्राह्मण उनके खाने पीने का ध्यान रखता था, उसे गुरु साहिबान के शेह्जादों की देखरेख का दायित्व दिया गया था l उसकी चूक केवल इतनी ही थी कि उसके मूंह से एक छिपी रहने वाली बात निकल गई और केवल सिंह नाम सिख ने इसकी मुखबिरी मलेर-कोटला के कोतवाल को दे दी और शेह्जादे तथा माता गूज्जरी जी को गिरफ्तार कर लिया गया l
जिस काल कोठरी में माता गूजरी जी और शेह्जादों को रखा गया था वो पीछे की और से खुली हुई थी जिसके पीछे एक नदी बहती थी l
दिसम्बर का महीना था और कडाके की ठंड थी, फिर भी मोती राम मेहरा नामक एक हिन्दू खत्री (क्षत्रिय) अपनी जान पर खेलकर नदी के मुंहाने से होता हुआ वहां जाकर उन्हें गर्म गर्म दूध पिला कर आता था l बाद में जब इसका भेद खुला तो मोती राम मेहरा को आटा पीसने वाली चक्की के बीच पीसकर मार डाला गया l
गुरु साहिबान के शेह्जादों मलेर कोटला के नवाब द्वारा नृशंस हत्या कर देने के बाद उनके अंतिम संस्कार हेतु कोई भी सिख सामने नही आया था, यह भय था या खौफ यह तो ज्ञात नही परन्तु फिर एक टोडरमल नाम का वैश्य सामने आया जिसने उस समय 7800 स्वर्ण मुद्राएं धरती बिछा कर उतनी भूमि खरीदी जितने पर गुरु साहिबान के शेह्जादों का अंतिम संस्कार हो सके l
आज के समय में 7800 स्वर्ण मुद्राओं की कीमत लगभग 30 मिलियन डॉलर बनती हैं l भारतीय मुद्रा में लगभग 150 करोड़ से 180 करोड़ रूपये बैठती है l परन्तु इस महान अभूतपूर्व सहयोग की भी सिख इतिहास में कोई पूछ नही न ही कहीं लिखा पढ़ाया जाता है l
https://thaluaclub.in/2014/07/22/sikh-and-hindu/