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राजा भीमचाँद जी और गुरु तेग बहादुर जी


गुरु तेग बहादुर जी का असली नाम त्याग मल सोढ़ी था l इन्हें हिमाचल प्रदेश के बिलास पुर के राजा ने अपने यहाँ आश्रय दिया था क्यूंकि उस समय सिख पन्थ इन्हें अपना गुरु मानने को र्तैयार नही थे, अकाल तख़्त ने भी अमृतसर आने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, ऐसा sikhiwiki.net पर ही पढ़ सकते हैं l बिलास पुर के राजा ने जो गाँव रहने को दिया था उस का नाम रखा गया चक-नानके, जिसको कि बाद में आनंदपुर साहिब का नाम दिया गया l यह बात भी इतिहास में दर्ज है कि इसी बिलासपुर के राजा की मृत्यु के बाद जो अगले राजा बने उनके पुत्र राजा भीमचंद, उन्ही के विरुद्ध गुरु गोविन्द सिंह ने तलवार उठाई थी जो कि आप Battle of Bhangani के नाम से सर्च करके पढ़ सकते हैं l
राजा भीमचाँद जी के पास कुछ हिन्दू गए थे शिकायत करने कि गुरु गोविन्द सिंह हिन्दुओं को धर्मान्तरित कर रहे हैं, हिन्दू देवी देवताओं के विरुद्ध अमर्यादित टिप्पणियाँ करते हैं l राजा भीमचंद जी ने गुरु गोविन्द सिंह जी को बिलासपुर में आमंत्रित किया और उनसे निवेदन किया था कि कृपया आप ऐसा कार्य न करें जिससे हिन्दू भावनाओं को ठेस पहुंचे, उस समय गुरु गोविन्द सिंह जी ने आश्वासन दे दिया था परन्तु बाद में न जाने ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने राजा भीमचंद जी के विरुद्ध युद्ध का आह्वान किया l 80000 की भीमचंद की सेना के सामने 8000 सिख सेना थी, और फिर भी सिख इतिहास में यह लिखा जाता है कि राजा भीमचंद जी ने भयाक्रांत होकर गुरु गोविन्द सिंह जी के सामने संधि का प्रस्ताव रखा l
Battle of Bhangani के बाद राजा भीमचंद जी ने गढवाल नरेश, मिथिला नरेश, नेपाल नरेश, दरभंगा नरेश आदि के साथ एक syndicate बनाई और औरंगजेब को tax देने से मना कर दिया गया l औरंगजेब ने अपनी सेना भेजी बिलासपुर की और परन्तु उस सेना ने पहले आनंदपुर के किले को ही घेर लिया l 8 महिनो तक आनंदपुर साहिब के किले के बाहर मुगल सेना डेरा डाल कर बैठी रही, कोई युद्ध नही हुआ इन 8 महीनों में l 8 महीनों बाद गुरु गोविन्द सिंह जी ने पंज प्यारों को पानी में बताशे घोल कर अमृत बना कर पिलाया और खालसा पन्थ का निर्माण किया l जिसके तुरंत बाद ही पंज प्यारों ने गुरु गोविन्द सिंह जी से यह निवेदन किया कि आप यहाँ से चले जाइए समय रहते, बाकी जो होगा वो हम देख लेंगे l गुरु गोविन्द जी अपने कुछ साथियों के साथ किले के गुप्त दरवाजे से अपने संघर्ष हेतु निकल पड़े l

उसके बाद चमकौर गढ़ी के युद्ध का उल्लेख प्राप्त होता है, वहां पर भी मुगल सेना डेरा डाल कर बैठी हुई थी l वहां पर गुरु गोविन्द जी पर खतरा था तो एक योजना बनाई गई जिसके अंतर्गत गनी खान और नबी खान नामक दो मुसलमानों ने गुरु गोविन्द सिंह जी को सूफियों की भांति नीले वस्त्र पहनने का अनुरोध किया l गुरु गोविन्द सिंह जी बहुत चतुर थे वो गनी खान और नबी खान की योजना समझ गये अत: टर्न एक रंगाई वाला बुलाया गया और एक वस्त्र कू नीले रंग में रंगवाया गया l फिर एक दो मंजिला पालकी बनवाई गई (A double-storeyed cell) जिसमे बिठा कर गुरु गोविन्द सिंह जी को एक महान सूफी संत बता कर मुगल सेना के बीच में से निकाल कर ले गये l और गुरु गोविन्द जी के प्राणों की रक्षा हुई l परन्तु कोई युद्ध नही हुआ l फिर भी इस महान युद्ध की महान विजय गाथा को “उच्च दा पीर” नामक गुरुद्वारा बना कर अतुलनीय सम्मान दिया जाता है l
http://www.sikhiwiki.org/index.php/Gurudwara_Uch_Da_Pir


उसके कुछ दिनों बाद गुरु गोविन्द सिंह जी ने औरंगजेब की मनसबदारी स्रीकार की और दक्षिण की और प्रस्थान किया l कुछ समय बाद औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात उसके बेटों की सत्ता प्राप्त ह्रेतु आपसी संघर्ष में गुरु गोविन्द सिंह जी ने औरंगजेब के बड़े बेटे को गद्दी पर बिठाने में सहायता भी की अन्यथा मुगल सत्ता समय समय के लिए लुप्तप्राय भी हो सकती थी l कुछ इतिहासकार मानते हैं कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि मुगल कमजोर न हों, मराठे शक्तिशाली न हों और सिख पन्थ को मराठों द्वारा या हिन्दू साम्राज्य द्वारा कोई हानि न पहुंचे l
दक्षिण की और प्रस्थान के बाद गुरु गोविन्द सिंह जी की भेंट एक मराठी ब्राह्मण लक्ष्मण दास भारद्वाज उर्फ़ संत माधव दास उर्फ़ बन्दा बैरागी उर्फ़ बन्दा सिंह बहादुर जी से हुई l लक्ष्मण दास भरद्वाज को अपनी युवावस्था में वैराग्य प्राप्त हुआ और वो साधना में लीन होकर एक महान संत हुए जिनसे उनका नाम हुआ संत माधव दास, कहते हैं कि उनके पास अनेक शक्तियाँ थीं l उन्होंने गुरु गोविन्द सिंह जी को अपने आश्रम में आश्रय दिया और अनेकानेक औषधि आदि से उनका उपचार एवं चिकित्सा का कार्य किया l बाद में गुरु गोविन्द सिंह जी पर हुए अत्याचार का बदला लेने हेतु संत माधव दास उर्फ़ बन्दा बैरागी उर्फ़ बना सिंह बहादुर उत्तर भारत कि और प्रस्थान कर गये l
लक्ष्मण दास भरद्वाज को कुछ इतिहासकार हिमाचल या जम्मू का डोगरा राजपूत भी बताते हैं l
उत्तर भारत में पहुँचने के बाद बन्दा सिंह बहादुर उर्फ़ बन्दा बैरागी ने सभी हिन्दुओं और सिखों को लेकर एक सेना बनाई और सबको प्रशिक्षित किया, उन्हिएँ तीरंदाजी, तलवार बाजी, मार्शल आर्ट आदि सब सिखा कर युद्ध का में पारंगत किया l आज सिखों के महोत्सवों में जो हैरत अंगेज़ कारनामे किये जाते हैं वो सब बन्दा बैरागी जी की ही देन है l बन्दा बैरागी ने अपने युद्ध कौशल से करनाल, जीन्द, सहारन पूत, महेंद्र गढ़, पटियाला, आदि सब क्षेत्र जीत लिए और सभी भूमि उन्होंने ग़रीबों में बाँट दी l जब बन्दा बैरागी ने लाहौर की और आक्रमण किया तो औरंगजेब के दुसरे बेटे फर्रुखसियर जो कि अपने भाई से गद्दी हथिया चूका था उसने गुरु गोविन्द सिंह जी की दूसरी पत्नी माता सुन्दरी देवी तथा दूसरी पत्नी जिन्हें गुरु गोविन्द सिंह जी की अध्यात्मिक पत्नी कहा जाता है, दोनों फर्रुखसियर की नजरबंदी में दिल्ली में रह रही थीं l मुगल बादशाह फर्रुखसियर ने दोनों गुरु माताओं से यह आग्रह किया कि बन्दा बैरागी कोई रोकें लाहौर पर आक्रमण करने से बदले में सबको जागीर तथा धन आदि देने का आश्वासन दिया l गुरु माताओं ने पहला पत्र लिखा बन्दा बैरागी को जिसके उत्तर में बन्दा बैरागी ने लिखा कि मैं नही रुकुंगा मैं गुरु के साथ हुए अत्याचार का बदला लेने आया हूँ l दुसरे पत्र में भी गुरु माताओं ने ऐसा ही निवेदन किया परन्तु बन्दा बैरागी ने पुन: साफ़ मना कर दिया l तीसरा पत्र गुरु माताओं ने बन्दा बैरागी की सेना के सिख जनरल विनोद सिंह को लिखा और आदेश दिया कि बन्दा बैरागी का साथ न दें l अगले दिन लाहौर के किले पर जब आक्रमण किया गया तो चलती लड़ाई से बन्दा बैरागी की सेना के सभी सिख मुगलों के साथ जाकर खड़े हो गये l और बन्दा बैरागी को पीछे हटना पड़ा l
http://www.sikhiwiki.org/index.php/Mata_Sahib_Devan



अगले दिन पुन: जब बन्दा बैरागी लाहौर पर आक्रमण हेतु अपने किले से बाहर निकले तो मुगलों ने चालाकी की और सभी सिखों को मुगल सेना के सबसे आगे खड़ा कर दिया गया l बन्दा बैरागी असमंजस में पड़ गये कि इन बच्चों को तो मैंने अपने हाथों से प्रशिक्षित किया है इन पर मैं शस्त्र कैसे चलाऊं ?बन्दा बैरागी और कई सैनिकों को किले के अंदर रहना पड़ा कई महीनों तक l
कई महीनों बाद बन्दा बैरागी के किले में जब राशन पानी आदि समाप्त हो गया था तो लोगों को मरता देख कर बन्दा बैरागी ने आत्म समर्पण किया l बन्दा बैरागी और उनके सैकड़ों साथियों को गिरफ्तार करके दिल्ली लाया गया l बन्दा बैरागी तथा सभी साथियों को दिल्ली के चांदनी चौक समेत कई इलाकों में रेहड़ी पर एक पिंजरा बना कर उसमे बिठा कर नुमाइश के लिए बिठाया जाता था l लोग उन पर तरह तरह की फब्तियां कसते और मल मूत्र आदि फेंकते रहते थे l दिल्ली के महरौली के पास स्थित क़ुतुब मीनार के पास सन 1716 में बन्दा बैरागी को इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया परन्तु बन्दा बैरागी ने नही किया l उनके 4 वर्ष के छोटे पुत्र को भी इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया परन्तु वो न माना और मुगलों ने 4 वर्षीय पुत्र का दिल निकाल कर बन्दा बैरागी के मुंह में डालने का प्रयास किया गया l अगली सुबह ब्रह्म-मुहूर्त में बन्दा बैरागी ने अपने 8 वर्षीय बड़े पुत्र के साथ समाधी के माध्यम से ब्रह्मलीन हुए l
1716 से 1780 के आसपास तक सिख पन्थ छोटी छोटी मिसिलों में अपने कार्य करता रहा l फिर महाराजा रणजीत सिंह का उदय हुआ l मराठा नेता रघुनाथ राव ने लाहोर का किला जीतकर महराजा रणजीत सिंह जी को उपहार में दिया l
परन्तु इतिहास पुन: दोहराया गया lजब मराठा नेता होलकर अंग्रेजों के विरुद्ध अपने विजय अभियान की सफलता के निर्णायक दौर में था तब अंग्रेजों को सिखों ने पुन: सहायता दी l लाहौर के राजा रणजीत सिंह, पटियाले के रणधीर सिंह और कपूरथला के जस्सा सिंह ने अंग्रेजों से एक संधि की और अंग्रेजों को बहुत सा धन और बहुत बड़ी सेना की सहायता दी l
इस एतिहासिक विश्वासघात के कारण मराठा नेता होलकर की हार हुई l

इतिहासकार मानते हैं कि यदि सिखों ने यह विश्वासघात न किया होता और अंग्रेजों को कोई सहायता न प्राप्त होती तो शायद अंग्रेजों को 1857 से 40-50 वर्ष पहले ही खदेड़ दिया गया होता l
1857 के युध्द में भी सिखों ने अंग्रेजों का ही साथ दिया और स्व्त्नत्र्र्ता संग्राम में अंग्रेजों को विजयी बनाया l उसके बाद भारत विभाजन की प्रक्रिया के समय अकाली दल का मास्टर तारा सिंह जो कि जिन्ना का मित्र भी था उसने क्रिस्प कमीशन से जाकर सिक्खों के लिए एक अलग देश की मांग की जिसका नाम था खालिस्तान l क्रिस्प को खालिस्तान विषय पर कुछ ज्ञान नही था अधिक तो उसने मास्टर तारा सिंह को कहा कि वो एक सर्वे करे पूरे पंजाब का, और यदि मास्टर तारा सिंह पूरे पंजाब (भारत-पाकिस्तान ) में से एक भी सिख बहुसंख्यक जिला सिद्ध कर देगा तो वो खालिस्तान की मांग पर भी विचार करेगा l
क्रिस्प को समय भी मिल गया, अंतत: मास्टर तारा सिंह उस समय एक भी सिख Majority जिला पूरे पंजाब सूबे में नही दिखा पाया और उसका खालिस्तान का सपना अधूरा रह गया l उसके बाद भी खालिस्तान की मांग को लेकर अकाली दल और मास्टर तारा सिंह नेहरु के चक्कर लगाते रहे परन्तु नेहरु ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया l उस समय PEPSU नामक एक राज्य होता था भारत में जिसका नाम है (Eastern Punjab & Patiala State Union), इस PEPSU राज्य का बोर्डर पहले दिल्ली के पास होता था l मास्टर तारा सिंह और अकाली दल ने पहले भाषा के आधार पर PEPSU राज्य का विभाजन करवाया l पटियाले से उस तरफ गुरुमुखी लिपि को राज्य में लागू कर दिया गया l और अम्बाला से इस तरफ देव्नागरी लिपि ही रही l उसके बाद नवम्बर 1966 को मास्टर तारा सिंह और अकाली दल ने मिलकर PEPSU राज्य को तीन राज्यों में बाँट दिया (Trifurcation) गया और पंजाब, हरियाणा, तथा हिमाचल प्रदेश का निर्माण हुआ l कालचक्र कहिये या कुछ भी बाद में मास्टर तारा सिंह की पुत्री की हत्या भी खालिस्तान आतंकवादियों द्वारा ही की गई l
https://thaluaclub.in/2014/07/22/sikh-and-hindu/

SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari

For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed. हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में...

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चेतावनी : मै किसी धर्म, पार्टी, सम्प्रदाय का विरोध या सहयोग करने नही आया हूँ | मै सिर्फ १५,००० बर्ष की सच्ची इतिहास अध्ययन के बाद रखता हूँ | हिन्दू एक ही पूर्वज के संतान है | भविस्य पुराण के अनुसार राजा भोज ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कार्य का बंटवारा किया था | जिसके अनुसार कोई भी अपने योगयता के अनुसार कार्य कर सकता था | कोई भी कोई कार्य चुन सकता था | पूजा करना , सैनिक बनना,खाना बनाना,व्यापार करना ,पशु पालना, खेती करना इत्यादि | ये कालांतर में जाति का रूप लेता गया | हिन्दू के बहुजन समाज (पिछड़ा, अति पिछड़ा, अन्य पिछड़ा, दलित और महादलित ) को सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहा हूँ | योगयता और मेहनत ही उन्नति का साधन है | एक कटु सत्य : यह हैं की मध्य काल में जब वेद विद्या का लोप होने लगा था, उस काल में ब्राह्मण व्यक्ति अपने गुणों से नहीं अपितु अपने जन्म से समझा जाने लगा था, उस काल में जब शुद्र को नीचा समझा जाने लगा था, उस काल में जब नारी को नरक का द्वार समझा जाने लगा था, उस काल में मनु स्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं। जो धर्म सृष्टि के आरम्भ के पहले और प्रलय के बाद भी रहे उसे सनातन धर्म कहते है | सनातन धर्म का आदि और अंत नही है | नया सवेरा