कलियुग का प्रताप तो देखो बड़ा विस्मयकारि जिस वाल्मीकि मुनि के नाम से कितने मनुस्य भवसागर तर गए उसकी संतान को अछूत बनाया है |
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण मे स्वयं कहा है कि :
प्रेचेतसोंह दशमाः पुत्रों रघवनंदन। मनसा कर्मणा वाचा, भूतपूर्व न किल्विषम्।।
हे राम मै प्रचेता मुनि का दसवा पुत्र हू और राम मैंने अपने जीवन में कभी भी पापाचार कार्य नहीं किया है।
भगवान वाल्मीकि के पिता का नाम वरुण और मां का नाम चार्षणी था। वह अपने माता-पिता के दसवें पुत्र थे। उनके भाई ज्योतिषाचार्य भृगु ऋषि थे। महर्षि कश्यप और अदिति के नौवीं संतान थे पिता वरुण। वरुण का एक नाम प्रचेता भी है, इसलिए वाल्मीकि प्राचेतस नाम से भी विख्यात हैं।वाल्मीकि का नाम वाल्मीकि कैसे पड़ा इसकी एक रोचक कथा है। वाल्मीकि ने पूरी तरह़ भगवान से लौ लगाई और ईश्वर में तल्लीन रहने लगे। एक बार जब वह घोर तपस्या में लीन थे, उनके समाधिस्थ शरीर पर दीमकों ने अपनी बाम्बियां बना लीं। दीमकों की बाम्बियों को संस्कृत में वाल्मीक कहा जाता है। लेकिन वाल्मीकि को इसका आभास तक नहीं हुआ और वह तपस्या में मगन रहे और उसी अवस्था में आत्मज्ञानी हो गए।
आखिरकार, आकाशवाणी हुई, ‘तुमने ईश्वर के दर्शन कर लिए हैं। तुम्हें तो इसका ज्ञान तक नहीं है कि दीमकों ने तुम्हारी देह पर अपनी बाम्बियां बना ली हैं। तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई। अब से तुम्हें संसार में वाल्मीकि के नाम से जाना जाएगा।
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BF
कलियुग का प्रताप तो देखो बड़ा विस्मयकारि जिस वाल्मीकि मुनि के नाम से कितने मनुस्य भवसागर तर गए उसकी संतान को अछूत बनाया है |
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण मे स्वयं कहा है कि :
प्रेचेतसोंह दशमाः पुत्रों रघवनंदन। मनसा कर्मणा वाचा, भूतपूर्व न किल्विषम्।। हे राम मै प्रचेता मुनि का दसवा पुत्र हू और राम मैंने अपने जीवन में कभी भी पापाचार कार्य नहीं किया है। भगवान वाल्मीकि के पिता का नाम वरुण और मां का नाम चार्षणी था। वह अपने माता-पिता के दसवें पुत्र थे। उनके भाई ज्योतिषाचार्य भृगु ऋषि थे। महर्षि कश्यप और अदिति के नौवीं संतान थे पिता वरुण। वरुण का एक नाम प्रचेता भी है, इसलिए वाल्मीकि प्राचेतस नाम से भी विख्यात हैं।वाल्मीकि का नाम वाल्मीकि कैसे पड़ा इसकी एक रोचक कथा है। वाल्मीकि ने पूरी तरह़ भगवान से लौ लगाई और ईश्वर में तल्लीन रहने लगे। एक बार जब वह घोर तपस्या में लीन थे, उनके समाधिस्थ शरीर पर दीमकों ने अपनी बाम्बियां बना लीं। दीमकों की बाम्बियों को संस्कृत में वाल्मीक कहा जाता है। लेकिन वाल्मीकि को इसका आभास तक नहीं हुआ और वह तपस्या में मगन रहे और उसी अवस्था में आत्मज्ञानी हो गए। आखिरकार, आकाशवाणी हुई, ‘तुमने ईश्वर के दर्शन कर लिए हैं। तुम्हें तो इसका ज्ञान तक नहीं है कि दीमकों ने तुम्हारी देह पर अपनी बाम्बियां बना ली हैं। तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई। अब से तुम्हें संसार में वाल्मीकि के नाम से जाना जाएगा। https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BF
प्रेचेतसोंह दशमाः पुत्रों रघवनंदन। मनसा कर्मणा वाचा, भूतपूर्व न किल्विषम्।। हे राम मै प्रचेता मुनि का दसवा पुत्र हू और राम मैंने अपने जीवन में कभी भी पापाचार कार्य नहीं किया है। भगवान वाल्मीकि के पिता का नाम वरुण और मां का नाम चार्षणी था। वह अपने माता-पिता के दसवें पुत्र थे। उनके भाई ज्योतिषाचार्य भृगु ऋषि थे। महर्षि कश्यप और अदिति के नौवीं संतान थे पिता वरुण। वरुण का एक नाम प्रचेता भी है, इसलिए वाल्मीकि प्राचेतस नाम से भी विख्यात हैं।वाल्मीकि का नाम वाल्मीकि कैसे पड़ा इसकी एक रोचक कथा है। वाल्मीकि ने पूरी तरह़ भगवान से लौ लगाई और ईश्वर में तल्लीन रहने लगे। एक बार जब वह घोर तपस्या में लीन थे, उनके समाधिस्थ शरीर पर दीमकों ने अपनी बाम्बियां बना लीं। दीमकों की बाम्बियों को संस्कृत में वाल्मीक कहा जाता है। लेकिन वाल्मीकि को इसका आभास तक नहीं हुआ और वह तपस्या में मगन रहे और उसी अवस्था में आत्मज्ञानी हो गए। आखिरकार, आकाशवाणी हुई, ‘तुमने ईश्वर के दर्शन कर लिए हैं। तुम्हें तो इसका ज्ञान तक नहीं है कि दीमकों ने तुम्हारी देह पर अपनी बाम्बियां बना ली हैं। तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई। अब से तुम्हें संसार में वाल्मीकि के नाम से जाना जाएगा। https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BF