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जीव परमात्मा का अंश

श्री गणेश |
दलित, महादलित, पिछड़ा और अति पिछड़ा ये सभी हिन्दू है | इनके सारे पूर्वज हिन्दू ही थे | सारे हिन्दू मूलनिवासी है | अगर हम दलित महादलित हिन्दू नही होते तो हमारे पूर्वज संत वाल्मीकि और संत रविदास श्रीराम के नही होते | भगवान वाल्मीकि हिन्दू ही थे | कोई अछूत नही है | सब जीव परमात्मा का अंश है |
अगर उस समय छुआ - छूत होता तो वाल्मीकि मुनि के आश्रम में सीता नही जाती और लव - कुश का गुरु वाल्मीकि जी नही होते | रविदास ने भी राम को भजा |महर्षि वाल्मीकि मेंही दास , कबीर दास सब हिन्दू ही थे | सत्य तो एक ही होता है | कलियुग का प्रथम चरण चल रहा है | धर्म का पतन जारी है | जो इस समय धर्म की धुरी (धर्म में आस्था ) नही रखेगा | उसका पतन निश्चित है | 
वाल्मीकि रामायण में श्री राम चन्द्र जी महाराज द्वारा वनवास काल में निषाद राज द्वारा लाये गए भोजन को ग्रहण करना (बाल कांड 1/37-40) एवं शबर (कोल/भील) जाति की शबरी से बेर खाना (अरण्यक कांड 74/7) यह सिद्ध करता हैं की शुद्र वर्ण से उस काल में कोई भेद भाव नहीं करता था।
श्री रामचंद्र जी महाराज वन में शबरी से मिलने गए। शबरी के विषय में वाल्मीकि मुनि लिखते हैं की वह शबरी सिद्ध जनों से सम्मानित तपस्वनी थी। अरण्यक 74/10
इससे यह सिद्ध होता हैं की शुद्र को रामायण काल में तपस्या करने पर किसी भी प्रकार की कोई रोक नहीं थी।
नारद मुनि वाल्मीकि रामायण (बाल कांड 1/16) में लिखते हैं राम श्रेष्ठ, सबके साथ समान व्यवहार करने वाले और सदा प्रिय दृष्टी वाले हैं।
जब वेद , रामायण, महाभारत, उपनिषद्, गीता आदि सभी धर्म शास्त्र शुद्र को तपस्या करने, विद्या ग्रहण से एवं आचरण से ब्राह्मण बनने, समान व्यवहार करने का सन्देश देते हैं |
वेदों में शूद्र का अर्थ कोई ऐसी जाति या समुदाय न ही है जिससे भेदभाव बरता जाए |
कलियुग केवल नाम अधारा | भगवान राम का नाम लेना बहुत दुष्कर कार्य है | श्रीहरि का स्मरण मुश्किल है |इसमें बहुत बाधा है | ॐ नमः शिवाय | हर हर महादेव |

SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari

For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed. हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में...

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चेतावनी : मै किसी धर्म, पार्टी, सम्प्रदाय का विरोध या सहयोग करने नही आया हूँ | मै सिर्फ १५,००० बर्ष की सच्ची इतिहास अध्ययन के बाद रखता हूँ | हिन्दू एक ही पूर्वज के संतान है | भविस्य पुराण के अनुसार राजा भोज ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कार्य का बंटवारा किया था | जिसके अनुसार कोई भी अपने योगयता के अनुसार कार्य कर सकता था | कोई भी कोई कार्य चुन सकता था | पूजा करना , सैनिक बनना,खाना बनाना,व्यापार करना ,पशु पालना, खेती करना इत्यादि | ये कालांतर में जाति का रूप लेता गया | हिन्दू के बहुजन समाज (पिछड़ा, अति पिछड़ा, अन्य पिछड़ा, दलित और महादलित ) को सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहा हूँ | योगयता और मेहनत ही उन्नति का साधन है | एक कटु सत्य : यह हैं की मध्य काल में जब वेद विद्या का लोप होने लगा था, उस काल में ब्राह्मण व्यक्ति अपने गुणों से नहीं अपितु अपने जन्म से समझा जाने लगा था, उस काल में जब शुद्र को नीचा समझा जाने लगा था, उस काल में जब नारी को नरक का द्वार समझा जाने लगा था, उस काल में मनु स्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं। जो धर्म सृष्टि के आरम्भ के पहले और प्रलय के बाद भी रहे उसे सनातन धर्म कहते है | सनातन धर्म का आदि और अंत नही है | नया सवेरा