जय श्री गणेश !
वेदों और पुराणों में कही भी मानव में भेदभाव नही है | वेद पुराण में जड़ चेतन को भगवान का अंश बताया गया है |
वेदों में शूद्र का अर्थ कोई ऐसी जाति या समुदाय नही है जिससे भेदभाव बरता जाए |
मनुवाद का जन्म आज से २८०० साल पहले हुआ और जिसका अंत भगवान् गौतम बुद्ध ने लगभग २५०० साल पहले किया | मनुस्मृति और ब्राह्मणवाद का कालखंड लगभग ३०० साल का था
वेदों में शूद्रों के विषय में कथन
1. तपसे शुद्रम- यजुर्वेद 30/5
अर्थात- बहुत परिश्रमी ,कठिन कार्य करने वाला ,साहसी और परम उद्योगों अर्थात तप को करने वाले आदि पुरुष का नाम शुद्र हैं।
2. नमो निशादेभ्य – यजुर्वेद 16/27
अर्थात- शिल्प-कारीगरी विद्या से युक्त जो परिश्रमी जन (शुद्र/निषाद) हैं उनको नमस्कार अर्थात उनका सत्कार करे।
3. वारिवस्कृतायौषधिनाम पतये नमो- यजुर्वेद 16/19
अर्थात- वारिवस्कृताय अर्थात सेवन करने हारे भृत्य का (नम) सत्कार करो।
4. रुचं शुद्रेषु- यजुर्वेद 18/48
अर्थात- जैसे ईश्वर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र से एक समान प्रीति करता हैं वैसे ही विद्वान लोग भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र से एक समान प्रीति करे।
5. पञ्च जना मम – ऋग्वेद
अर्थात पांचों के मनुष्य (ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र एवं अतिशूद्र निषाद) मेरे यज्ञ को प्रीतिपूर्वक सेवें। पृथ्वी पर जितने मनुष्य हैं वे सब ही यज्ञ करें।
इसी प्रकार के अनेक प्रमाण शुद्र के तप करने के, सत्कार करने के, यज्ञ करने के वेदों में मिलते हैं।
वाल्मीकि रामायण से शुद्र के उपासना से महान बनने के प्रमाण
मुनि वाल्मीकि जी कहते हैं की इस रामायण के पढ़ने से ()स्वाध्याय से ) ब्राह्मण बड़ा सुवक्ता ऋषि होगा, क्षत्रिय भूपति होगा, वैश्य अच्छा लाभ प्राप्त करेगा और शुद्र महान होगा। रामायण में चारों वर्णों के समान अधिकार देखते हैं देखते हैं। -सन्दर्भ- प्रथम अध्याय अंतिम श्लोक
इसके अतिरिक्त अयोध्या कांड अध्याय 63 श्लोक 50-51 तथा अध्याय 64 श्लोक 32-33 में रामायण को श्रवण करने का वैश्यों और शूद्रों दोनों के समान अधिकार का वर्णन हैं।
महाभारत से शुद्र के उपासना से महान बनने के प्रमाण
श्री कृष्ण जी कहते हैं –
हे पार्थ ! जो पापयोनि स्त्रिया , वैश्य और शुद्र हैं यह भी मेरी उपासना कर परमगति को प्राप्त होते हैं। गीता 9/32
उपनिषद् से शुद्र के उपासना से महान बनने के प्रमाण
यह शुद्र वर्ण पूषण अर्थात पोषण करने वाला हैं और साक्षात् इस पृथ्वी के समान हैं क्यूंकि जैसे यह पृथ्वी सबका भरण -पोषण करती हैं वैसे शुद्र भी सबका भरण-पोषण करता हैं। सन्दर्भ- बृहदारण्यक उपनिषद् 1/4/13
व्यक्ति गुणों से शुद्र अथवा ब्राह्मण होता हैं नाकि जन्म गृह से।
सत्यकाम जाबाल जब गौतम गोत्री हारिद्रुमत मुनि के पास शिक्षार्थी होकर पहुँचा तो मुनि ने उसका गोत्र पूछा। उन्होंने उत्तर दिया था की युवास्था में मैं अनेक व्यक्तियों की सेवा करती रही। उसी समय तेरा जन्म हुआ, इसलिए मैं नहीं जानती की तेरा गोत्र क्या हैं। मेरा नाम सत्यकाम हैं। इस पर मुनि ने कहा- जो ब्राह्मण न हो वह ऐसी सत्य बात नहीं कर सकता। सन्दर्भ- छान्दोग्य उपनिषद् 3/4
महाभारत में यक्ष -युधिष्ठिर संवाद 313/108-109 में युधिष्ठिर के अनुसार व्यक्ति कूल, स्वाध्याय व ज्ञान से द्विज नहीं बनता अपितु केवल आचरण से बनता हैं।
कर्ण ने सूत पुत्र होने के कारण स्वयंवर में अयोग्य ठह राये जाने पर कहा था- जन्म देना तो ईश्वर अधीन हैं, परन्तु पुरुषार्थ के द्वारा कुछ का कुछ बन जाना मनुष्य के वश में हैं।
आपस्तम्ब धर्म सूत्र 2/5/11/10-11 – जिस प्रकार धर्म आचरण से निकृष्ट वर्ण अपने से उत्तम उत्तम वर्ण को प्राप्त होता हैं जिसके वह योग्य हो। इसी प्रकार अधर्म आचरण से उत्तम वर्ण वाला मनुष्य अपने से नीचे वर्ण को प्राप्त होता हैं।
जो शुद्र कूल में उत्पन्न होके ब्राह्मण के गुण -कर्म- स्वभाव वाला हो वह ब्राह्मण बन जाता हैं उसी प्रकार ब्राह्मण कूल में उत्पन्न होकर भी जिसके गुण-कर्म-स्वाभाव शुद्र के सदृश हों वह शुद्र हो जाता हैं- मनु 10/65
चारों वेदों का विद्वान , किन्तु चरित्रहीन ब्राह्मण शुद्र से निकृष्ट होता हैं, अग्निहोत्र करने वाला जितेन्द्रिय ही ब्राह्मण कहलाता हैं- महाभारत वन पर्व 313/111
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र सभी तपस्या के द्वारा स्वर्ग प्राप्त करते हैं।महाभारत अनुगीता पर्व 91/37
सत्य,दान, क्षमा, शील अनृशंसता, तप और दया जिसमें हो वह ब्राह्मण हैं और जिसमें यह न हों वह शुद्र होता हैं। वन पर्व 180/21-26
पहले कलियुग ने प्रपंच के तहत मनु स्मृति (मानव शास्त्र ) और विभिन्न स्मृति की रचना करवाई वेदों और पुराणों की गलत व्याख्या किया | मनु स्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं। जिससे ब्राह्मणवाद का जन्म हुआ | ईश्वर ने सबको मानव बनाया | इन तथाकधित ग्रंथो ने समाज के एक बड़े हिस्से को धर्म से दूर किया | इस प्रपंच में धर्म की गलत व्याख्या और तर्क रखे गए | मानव मात्र में भेद किया गया |
ब्राह्मण को सर्वोपरि बताया गया | जिससे समाज में असंतोष और धर्म से अलगाव पैदा हुआ | कलियुग का मार्ग आसान और प्रसस्त हुआ |
मनुवाद का जन्म आज से २८०० साल पहले हुआ और जिसका अंत भगवान् गौतम बुद्ध ने लगभग २५०० साल पहले किया | मनुस्मृति और ब्राह्मणवाद का कालखंड लगभग ३०० साल का था | इसके बाद अनेक धर्म का अभ्युदय हुआ | बौद्ध ,जैन कबीर ,सिख| मनुवाद का जन्म मानव मात्र को धर्म से विमुख करने के लिए हुआ था | जिससे कलियुग अपना विस्तार कर सके | भारत में मनुवाद के कारन हिन्दू चार भाग में कर्म के हिसाब से विभाजित हुआ | जिसमे पूजा करने का हक़ कुछ तथाकथित ब्राह्मण को दिया गया | जिसमे क्षत्रिय वैस्य शुद्र से पूजा करने का अधिकार छिन लिया | जिससे धर्म की बहुत हानि हुई |
वेद पुराण में जड़ चेतन को भगवान का अंश बताया गया है | भगवान सभी सजीव - निर्जीव में विद्यमान है | अतः भगवान का पूजा का हक़ हाथी को हो सकता है तो मनुस्य को क्यों नही |
अतः सभी मनुस्य का परम कर्तव्य है की भगवान का नाम स्मरण करे | कलियुग केवल नाम अधारा | भगवान श्री हरि का नाम स्मरण मात्र से हम अर्थ धर्म काम मोक्ष के अधिकारी हो जाते है | इसमें न तो ज्ञान की आवस्यकता है न प्रपंच कि | न मंदिर कि न पूजन सामग्री कि |
हरि ॐ तत्सत | जय श्री राम | ॐ नमः शिवाय
वेदों और पुराणों में कही भी मानव में भेदभाव नही है | वेद पुराण में जड़ चेतन को भगवान का अंश बताया गया है |
वेदों में शूद्र का अर्थ कोई ऐसी जाति या समुदाय नही है जिससे भेदभाव बरता जाए |
मनुवाद का जन्म आज से २८०० साल पहले हुआ और जिसका अंत भगवान् गौतम बुद्ध ने लगभग २५०० साल पहले किया | मनुस्मृति और ब्राह्मणवाद का कालखंड लगभग ३०० साल का था
वेदों में शूद्रों के विषय में कथन
1. तपसे शुद्रम- यजुर्वेद 30/5
अर्थात- बहुत परिश्रमी ,कठिन कार्य करने वाला ,साहसी और परम उद्योगों अर्थात तप को करने वाले आदि पुरुष का नाम शुद्र हैं।
2. नमो निशादेभ्य – यजुर्वेद 16/27
अर्थात- शिल्प-कारीगरी विद्या से युक्त जो परिश्रमी जन (शुद्र/निषाद) हैं उनको नमस्कार अर्थात उनका सत्कार करे।
3. वारिवस्कृतायौषधिनाम पतये नमो- यजुर्वेद 16/19
अर्थात- वारिवस्कृताय अर्थात सेवन करने हारे भृत्य का (नम) सत्कार करो।
4. रुचं शुद्रेषु- यजुर्वेद 18/48
अर्थात- जैसे ईश्वर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र से एक समान प्रीति करता हैं वैसे ही विद्वान लोग भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र से एक समान प्रीति करे।
5. पञ्च जना मम – ऋग्वेद
अर्थात पांचों के मनुष्य (ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र एवं अतिशूद्र निषाद) मेरे यज्ञ को प्रीतिपूर्वक सेवें। पृथ्वी पर जितने मनुष्य हैं वे सब ही यज्ञ करें।
इसी प्रकार के अनेक प्रमाण शुद्र के तप करने के, सत्कार करने के, यज्ञ करने के वेदों में मिलते हैं।
वाल्मीकि रामायण से शुद्र के उपासना से महान बनने के प्रमाण
मुनि वाल्मीकि जी कहते हैं की इस रामायण के पढ़ने से ()स्वाध्याय से ) ब्राह्मण बड़ा सुवक्ता ऋषि होगा, क्षत्रिय भूपति होगा, वैश्य अच्छा लाभ प्राप्त करेगा और शुद्र महान होगा। रामायण में चारों वर्णों के समान अधिकार देखते हैं देखते हैं। -सन्दर्भ- प्रथम अध्याय अंतिम श्लोक
इसके अतिरिक्त अयोध्या कांड अध्याय 63 श्लोक 50-51 तथा अध्याय 64 श्लोक 32-33 में रामायण को श्रवण करने का वैश्यों और शूद्रों दोनों के समान अधिकार का वर्णन हैं।
महाभारत से शुद्र के उपासना से महान बनने के प्रमाण
श्री कृष्ण जी कहते हैं –
हे पार्थ ! जो पापयोनि स्त्रिया , वैश्य और शुद्र हैं यह भी मेरी उपासना कर परमगति को प्राप्त होते हैं। गीता 9/32
उपनिषद् से शुद्र के उपासना से महान बनने के प्रमाण
यह शुद्र वर्ण पूषण अर्थात पोषण करने वाला हैं और साक्षात् इस पृथ्वी के समान हैं क्यूंकि जैसे यह पृथ्वी सबका भरण -पोषण करती हैं वैसे शुद्र भी सबका भरण-पोषण करता हैं। सन्दर्भ- बृहदारण्यक उपनिषद् 1/4/13
व्यक्ति गुणों से शुद्र अथवा ब्राह्मण होता हैं नाकि जन्म गृह से।
सत्यकाम जाबाल जब गौतम गोत्री हारिद्रुमत मुनि के पास शिक्षार्थी होकर पहुँचा तो मुनि ने उसका गोत्र पूछा। उन्होंने उत्तर दिया था की युवास्था में मैं अनेक व्यक्तियों की सेवा करती रही। उसी समय तेरा जन्म हुआ, इसलिए मैं नहीं जानती की तेरा गोत्र क्या हैं। मेरा नाम सत्यकाम हैं। इस पर मुनि ने कहा- जो ब्राह्मण न हो वह ऐसी सत्य बात नहीं कर सकता। सन्दर्भ- छान्दोग्य उपनिषद् 3/4
महाभारत में यक्ष -युधिष्ठिर संवाद 313/108-109 में युधिष्ठिर के अनुसार व्यक्ति कूल, स्वाध्याय व ज्ञान से द्विज नहीं बनता अपितु केवल आचरण से बनता हैं।
कर्ण ने सूत पुत्र होने के कारण स्वयंवर में अयोग्य ठह राये जाने पर कहा था- जन्म देना तो ईश्वर अधीन हैं, परन्तु पुरुषार्थ के द्वारा कुछ का कुछ बन जाना मनुष्य के वश में हैं।
आपस्तम्ब धर्म सूत्र 2/5/11/10-11 – जिस प्रकार धर्म आचरण से निकृष्ट वर्ण अपने से उत्तम उत्तम वर्ण को प्राप्त होता हैं जिसके वह योग्य हो। इसी प्रकार अधर्म आचरण से उत्तम वर्ण वाला मनुष्य अपने से नीचे वर्ण को प्राप्त होता हैं।
जो शुद्र कूल में उत्पन्न होके ब्राह्मण के गुण -कर्म- स्वभाव वाला हो वह ब्राह्मण बन जाता हैं उसी प्रकार ब्राह्मण कूल में उत्पन्न होकर भी जिसके गुण-कर्म-स्वाभाव शुद्र के सदृश हों वह शुद्र हो जाता हैं- मनु 10/65
चारों वेदों का विद्वान , किन्तु चरित्रहीन ब्राह्मण शुद्र से निकृष्ट होता हैं, अग्निहोत्र करने वाला जितेन्द्रिय ही ब्राह्मण कहलाता हैं- महाभारत वन पर्व 313/111
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र सभी तपस्या के द्वारा स्वर्ग प्राप्त करते हैं।महाभारत अनुगीता पर्व 91/37
सत्य,दान, क्षमा, शील अनृशंसता, तप और दया जिसमें हो वह ब्राह्मण हैं और जिसमें यह न हों वह शुद्र होता हैं। वन पर्व 180/21-26
पहले कलियुग ने प्रपंच के तहत मनु स्मृति (मानव शास्त्र ) और विभिन्न स्मृति की रचना करवाई वेदों और पुराणों की गलत व्याख्या किया | मनु स्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं। जिससे ब्राह्मणवाद का जन्म हुआ | ईश्वर ने सबको मानव बनाया | इन तथाकधित ग्रंथो ने समाज के एक बड़े हिस्से को धर्म से दूर किया | इस प्रपंच में धर्म की गलत व्याख्या और तर्क रखे गए | मानव मात्र में भेद किया गया |
ब्राह्मण को सर्वोपरि बताया गया | जिससे समाज में असंतोष और धर्म से अलगाव पैदा हुआ | कलियुग का मार्ग आसान और प्रसस्त हुआ |
मनुवाद का जन्म आज से २८०० साल पहले हुआ और जिसका अंत भगवान् गौतम बुद्ध ने लगभग २५०० साल पहले किया | मनुस्मृति और ब्राह्मणवाद का कालखंड लगभग ३०० साल का था | इसके बाद अनेक धर्म का अभ्युदय हुआ | बौद्ध ,जैन कबीर ,सिख| मनुवाद का जन्म मानव मात्र को धर्म से विमुख करने के लिए हुआ था | जिससे कलियुग अपना विस्तार कर सके | भारत में मनुवाद के कारन हिन्दू चार भाग में कर्म के हिसाब से विभाजित हुआ | जिसमे पूजा करने का हक़ कुछ तथाकथित ब्राह्मण को दिया गया | जिसमे क्षत्रिय वैस्य शुद्र से पूजा करने का अधिकार छिन लिया | जिससे धर्म की बहुत हानि हुई |
वेद पुराण में जड़ चेतन को भगवान का अंश बताया गया है | भगवान सभी सजीव - निर्जीव में विद्यमान है | अतः भगवान का पूजा का हक़ हाथी को हो सकता है तो मनुस्य को क्यों नही |
अतः सभी मनुस्य का परम कर्तव्य है की भगवान का नाम स्मरण करे | कलियुग केवल नाम अधारा | भगवान श्री हरि का नाम स्मरण मात्र से हम अर्थ धर्म काम मोक्ष के अधिकारी हो जाते है | इसमें न तो ज्ञान की आवस्यकता है न प्रपंच कि | न मंदिर कि न पूजन सामग्री कि |
हरि ॐ तत्सत | जय श्री राम | ॐ नमः शिवाय