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देव देव दरबार दुवारै, रांम रांम रैदास पुकारै

देव देव दरबार दुवारै, रांम रांम रैदास पुकारै

हम दलितों के पास खोने के लिए क्या बचा एक धर्म जिसके लिए हमारे कितनी पीढ़ी तबाह हो गए | हमने घर - बार सब कुछ खो दिया | हमने एक धर्म ही हमारे पास है | अगर उसे भी हमने खो दिया तो हमारे पास क्या रहेगा? हम राम के है राम हमारे है | अगर उस समय छुआ - छूत होता तो वाल्मीकि मुनि के आश्रम में सीता नही जाती और लव - कुश का गुरु वाल्मीकि जी नही होते |

हम कोई कायर नही जो धर्म खो दे | जिस धर्म के लिए मैंने सदियों संघर्ष किया | हमारे पूर्वज वाल्मीकि रविदास मेही दास सदगुरु का ज्ञान बचा | अब हमें इसे नही खोना |

हमारे पूर्वज हिन्दू ही थे | सारे हिन्दू मूलनिवासी है | अगर हम दलित महादलित हिन्दू नही होते तो हमारे पूर्वज संत वाल्मीकि और संत रविदास श्रीराम के गुरु नही होते | भगवान वाल्मीकि हिन्दू ही थे | कोई अछूत नही है | सब जीव परमात्मा का अंश है |

भाव में भगवान बस्ते है |

मन चंगा कठौती में गंगा |

जो तुम तोरौ रांम मैं नहीं तोरौं।

तुम सौं तोरि कवन सूँ जोरौं।। टेक।।

तीरथ ब्रत का न करौं अंदेसा, तुम्हारे चरन कवल का भरोसा।।१।।

जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ तुम्हारी पूजा, तुम्ह सा देव अवर नहीं दूजा।।२।।

मैं हरि प्रीति सबनि सूँ तोरी, सब स्यौं तोरि तुम्हैं स्यूँ जोरी।।३।।

सब परहरि मैं तुम्हारी आसा, मन क्रम वचन कहै रैदासा।।४।।

त्राहि त्राहि त्रिभवन पति पावन।

अतिसै सूल सकल बलि जांवन।। टेक।।

कांम क्रोध लंपट मन मोर, कैसैं भजन करौं रांम तोर।।१।।

विषम विष्याधि बिहंडनकारी, असरन सरन सरन भौ हारी।।२।।

देव देव दरबार दुवारै, रांम रांम रैदास पुकारै।।३।।

जीव परमात्मा का अंश

श्री गणेश |
दलित, महादलित, पिछड़ा और अति पिछड़ा ये सभी हिन्दू है | इनके सारे पूर्वज हिन्दू ही थे | सारे हिन्दू मूलनिवासी है | अगर हम दलित महादलित हिन्दू नही होते तो हमारे पूर्वज संत वाल्मीकि और संत रविदास श्रीराम के नही होते | भगवान वाल्मीकि हिन्दू ही थे | कोई अछूत नही है | सब जीव परमात्मा का अंश है |
अगर उस समय छुआ - छूत होता तो वाल्मीकि मुनि के आश्रम में सीता नही जाती और लव - कुश का गुरु वाल्मीकि जी नही होते | रविदास ने भी राम को भजा |महर्षि वाल्मीकि मेंही दास , कबीर दास सब हिन्दू ही थे | सत्य तो एक ही होता है | कलियुग का प्रथम चरण चल रहा है | धर्म का पतन जारी है | जो इस समय धर्म की धुरी (धर्म में आस्था ) नही रखेगा | उसका पतन निश्चित है | 
वाल्मीकि रामायण में श्री राम चन्द्र जी महाराज द्वारा वनवास काल में निषाद राज द्वारा लाये गए भोजन को ग्रहण करना (बाल कांड 1/37-40) एवं शबर (कोल/भील) जाति की शबरी से बेर खाना (अरण्यक कांड 74/7) यह सिद्ध करता हैं की शुद्र वर्ण से उस काल में कोई भेद भाव नहीं करता था।
श्री रामचंद्र जी महाराज वन में शबरी से मिलने गए। शबरी के विषय में वाल्मीकि मुनि लिखते हैं की वह शबरी सिद्ध जनों से सम्मानित तपस्वनी थी। अरण्यक 74/10
इससे यह सिद्ध होता हैं की शुद्र को रामायण काल में तपस्या करने पर किसी भी प्रकार की कोई रोक नहीं थी।
नारद मुनि वाल्मीकि रामायण (बाल कांड 1/16) में लिखते हैं राम श्रेष्ठ, सबके साथ समान व्यवहार करने वाले और सदा प्रिय दृष्टी वाले हैं।
जब वेद , रामायण, महाभारत, उपनिषद्, गीता आदि सभी धर्म शास्त्र शुद्र को तपस्या करने, विद्या ग्रहण से एवं आचरण से ब्राह्मण बनने, समान व्यवहार करने का सन्देश देते हैं |
वेदों में शूद्र का अर्थ कोई ऐसी जाति या समुदाय न ही है जिससे भेदभाव बरता जाए |
कलियुग केवल नाम अधारा | भगवान राम का नाम लेना बहुत दुष्कर कार्य है | श्रीहरि का स्मरण मुश्किल है |इसमें बहुत बाधा है | ॐ नमः शिवाय | हर हर महादेव |

हिन्दू एक पूर्वज के संतान



हिन्दू हिंदुस्तान का मूलनिवासी है |

मनुवाद के नाम मुगलो ने २० करोड़ से अधिक हिन्दुओ का धर्मान्तरण करवाया | उसके बाद अंग्रेजो ने क्षत्रियो को दलित और गुलाम बनाया |
कांग्रेस ने एक दलित, महादलित, पिछड़ा और अतिपिछड़ा के नाम से राजनीती चमकाई | मार्क्सवादी और उनके बुद्धिजीवियों ने माओवाद और नक्सलवाद पैदा करवाया |
पूर्वोत्तर (बंगाल, असम) और दक्षिणी भारत के राज्यों में विद्रोह और अलगाव पैदा कर लगभग हिन्दू मुक्त करवाया | मनुवाद का नाम ले ले कर माओवाद और नक्सलवाद को मार्क्सवादी पार्टी ने १५ से २० राज्यों में अलगाववाद पैदा किया है |
जबकि यही बुद्धिजीवी ने पशिम बंगाल पर ३५ साल से अधिक शासन किया लेकिन किसी मज़दूर या दलित का भला नही किया सिर्फ राजनीती चमकाई |दलितों को धर्मान्तरण करवाया या उग्रवादी का ठप्पा लगाके मौत दिया | यह धर्मान्तरण और उग्रवाद का घिनोना खेल अभी भी जारी है |

समाज में झूठी इतिहास पढ़ा नफरत के बीज बोया जा रहा है | मूलनिवासी के नाम पर बहुजन का भटका कर राजनीती चमकाया जा रहा है | जो हिन्दू १०,००० साल से ज्यादा समय से भारत में रहता है विदेशी कह कर समाज में द्वेष और घृणा का जहर घोल जा रहा है|

ईसाई मिशिनरी ने हिन्दू समाज में एक झूठ फैलाई है की हिन्दू विदेशी, आदिवासी और दलित मूलनिवासी है | सचाई यह है कि सारे वर्णो का खून एक ही है | ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैस्य और शुद्र का खून एक ही है | आज ईसाई मिशनरी शोध के नाम पर समाज को बाँट रहा है | पुराने समय जो शहर ,ग्राम में रहते थे | उनका बौद्धिक विकास ज्यादा हुआ |
जो लोग जंगल में रहते थे | उसका विकास और नजरिया प्रकृति के हिसाब से हुआ | जंगल में रहना दुष्कर और संकट पूर्ण होता है | बहुत सारे तपस्वी जंगल में ही तपस्या करते थे | उस समय समाज में लोभ और बैमानी नही थी | काम का बंटवारा योग्यता के आधार पर हुआ था | राजा जीवन के अंत समय में राजकाज छोड़कर वानप्रस्थ जीवन व्यतीत करते थे |
हमें वेद, पुराण और हिन्दू के धार्मिक ग्रन्थ में कोई भेदभाव नजर नही आता है | गौतम बुद्ध, महावीर, संत रविदास, वाल्मीकि, कबीर मेहीं दस इत्यादि के विचार में कोई अंतर नही है | सबने मनुवाद और ब्राह्मणवाद पर गहरा विरोध,आघात और सनातन धर्म को ही जनमानस में पुनर्स्थापित किया | अतः हिन्दू, बौद्ध ,जैन ,सिख एक सनातन धर्म है |  

वाल्मीकि

कलियुग का प्रताप तो देखो बड़ा विस्मयकारि जिस वाल्मीकि मुनि के नाम से कितने मनुस्य भवसागर तर गए उसकी संतान को अछूत बनाया है | महर्षि वाल्मीकि ने रामायण मे स्वयं कहा है कि :
प्रेचेतसोंह दशमाः पुत्रों रघवनंदन। मनसा कर्मणा वाचा, भूतपूर्व न किल्विषम्।। हे राम मै प्रचेता मुनि का दसवा पुत्र हू और राम मैंने अपने जीवन में कभी भी पापाचार कार्य नहीं किया है। भगवान वाल्मीकि के पिता का नाम वरुण और मां का नाम चार्षणी था। वह अपने माता-पिता के दसवें पुत्र थे। उनके भाई ज्योतिषाचार्य भृगु ऋषि थे। महर्षि कश्यप और अदिति के नौवीं संतान थे पिता वरुण। वरुण का एक नाम प्रचेता भी है, इसलिए वाल्मीकि प्राचेतस नाम से भी विख्यात हैं।वाल्मीकि का नाम वाल्मीकि कैसे पड़ा इसकी एक रोचक कथा है। वाल्मीकि ने पूरी तरह़ भगवान से लौ लगाई और ईश्वर में तल्लीन रहने लगे। एक बार जब वह घोर तपस्या में लीन थे, उनके समाधिस्थ शरीर पर दीमकों ने अपनी बाम्बियां बना लीं। दीमकों की बाम्बियों को संस्कृत में वाल्मीक कहा जाता है। लेकिन वाल्मीकि को इसका आभास तक नहीं हुआ और वह तपस्या में मगन रहे और उसी अवस्था में आत्मज्ञानी हो गए। आखिरकार, आकाशवाणी हुई, ‘तुमने ईश्वर के दर्शन कर लिए हैं। तुम्हें तो इसका ज्ञान तक नहीं है कि दीमकों ने तुम्हारी देह पर अपनी बाम्बियां बना ली हैं। तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई। अब से तुम्हें संसार में वाल्मीकि के नाम से जाना जाएगा। https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BF

रैदास

कलियुग का प्रताप : जिसने महर्षि रविदास की संतान को अछूत बनाया है |

संत रविदास : ”वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान, फिर मै क्यों छोडू इसे, पढ़ लू झूठ कुरान। वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार, तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार॥”

तब रांम रांम कहि गावैगा।
ररंकार रहित सबहिन थैं, अंतरि मेल मिलावैगा।। टेक।।

लोहा सम करि कंचन समि करि, भेद अभेद समावैगा।
जो सुख कै पारस के परसें, तो सुख का कहि गावैगा।।१।।
गुर प्रसादि भई अनभै मति, विष अमृत समि धावैगा।
कहै रैदास मेटि आपा पर, तब वा ठौरहि पावैगा।।२।।

भाई रे रांम कहाँ हैं मोहि बतावो।
सति रांम ताकै निकटि न आवो।। टेक।।
राम कहत जगत भुलाना, सो यहु रांम न होई।
करंम अकरंम करुणांमै केसौ, करता नांउं सु कोई।।१।।

जा रामहि सब जग जानैं, भ्रमि भूले रे भाई।
आप आप थैं कोई न जांणै, कहै कौंन सू जाई।।२।।

सति तन लोभ परसि जीय तन मन, गुण परस नहीं जाई।
अखिल नांउं जाकौ ठौर न कतहूँ, क्यूं न कहै समझाई।।३।।

भयौ रैदास उदास ताही थैं, करता को है भाई।
केवल करता एक सही करि, सति रांम तिहि ठांई।।४।।

रांमहि पूजा कहाँ चढ़ँाऊँ।
फल अरु फूल अनूप न पांऊँ।। टेक।।
थनहर दूध जु बछ जुठार्यौ, पहुप भवर जल मीन बिटार्यौ।
मलियागिर बेधियौ भवंगा, विष अंम्रित दोऊँ एकै संगा।।१।।
मन हीं पूजा मन हीं धूप, मन ही सेऊँ सहज सरूप।।२।।
पूजा अरचा न जांनूं रांम तेरी, कहै रैदास कवन गति मेरी।।३।।

रांम राइ का कहिये यहु ऐसी।
जन की जांनत हौ जैसी तैसी।। टेक।।
मीन पकरि काट्यौ अरु फाट्यौ, बांटि कीयौ बहु बांनीं।
खंड खंड करि भोजन कीन्हौं, तऊ न बिसार्यौ पांनी।।१।।
तै हम बाँधे मोह पासि मैं, हम तूं प्रेम जेवरिया बांध्यौ।
अपने छूटन के जतन करत हौ, हम छूटे तूँ आराध्यौ।।२।।
कहै रैदास भगति इक बाढ़ी, अब काकौ डर डरिये।
जा डर कौं हम तुम्ह कौं सेवैं, सु दुख अजहँू सहिये।।३।।

जो तुम तोरौ रांम मैं नहीं तोरौं।
तुम सौं तोरि कवन सूँ जोरौं।। टेक।।
तीरथ ब्रत का न करौं अंदेसा, तुम्हारे चरन कवल का भरोसा।।१।।
जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ तुम्हारी पूजा, तुम्ह सा देव अवर नहीं दूजा।।२।।
मैं हरि प्रीति सबनि सूँ तोरी, सब स्यौं तोरि तुम्हैं स्यूँ जोरी।।३।।
सब परहरि मैं तुम्हारी आसा, मन क्रम वचन कहै रैदासा।।४।।

त्राहि त्राहि त्रिभवन पति पावन।
अतिसै सूल सकल बलि जांवन।। टेक।।
कांम क्रोध लंपट मन मोर, कैसैं भजन करौं रांम तोर।।१।।
विषम विष्याधि बिहंडनकारी, असरन सरन सरन भौ हारी।।२।।
देव देव दरबार दुवारै, रांम रांम रैदास पुकारै।।३।।

हरि हरि हरि न जपहि रसना।
अवर सम तिआगि बचन रचना।। टेक।।
सुख सागरु सुरतर चिंतामनि कामधेनु बसि जाके।
चारि पदारथ असट दसा सिधि नवनिधि करतल ताके।।१।।

नाना खिआन पुरान बेद बिधि चउतीस अखर माँही।
बिआस बिचारि कहिओ परमारथु राम नाम सरि नाही।।२।।

सहज समाधि उपाधि रहत फुनि बड़ै भागि लिव लागी।
कहि रविदास प्रगासु रिदै धरि जनम मरन भै भागी।।३।।

हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरे।
हरि सिमरत जन गए निसतरि तरे।। टेक।।
हरि के नाम कबीर उजागर। जनम जनम के काटे कागर।।१।।
निमत नामदेउ दूधु पीआइया। तउ जग जनम संकट नहीं आइआ।।२।।
जनम रविदास राम रंगि राता। इउ गुर परसादि नरक नहीं जाता।।३।।

Raidas says, what shall I sing?
Singing, singing I am defeated.
How long shall I consider and proclaim:
absorb the self into the Self?


This experience is such,
that it defies all description.
I have met the Lord,
Who can cause me harm?


Hari in everything, everything in Hari –
For him who knows Hari and the sense of self,
no other testimony is needed:
the knower is absorbed.

— Ravidas


http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8

चमार कोई नीच जाति नहीँ, बल्कि सनातन धर्म के रक्षक जिन्होंने मुगलोँ का जुल्म सहा परन्तु धर्म न त्यागा

वाल्मीकि का श्रीराम

एक प्रश्न : भगवान् राम ने गिद्ध, काक, जटायु , भीलनी, केवट, अहिल्या, वानर, भालू, विभीषण, राक्षस और देवता सबका उद्धार किया | आज श्री राम पर अधिकार सिर्फ RSS और BJP का कैसे ? भगवान् राम और कृष्ण का पेटेंट सिर्फ ब्राह्मण के पास कैसे ? भगवान पर अधिकार सभी जीव सजीव और निर्जीव दोनों का है |

जब केवट का श्री राम पर अधिकार है तो हम दलितों का क्यों नही | जब वाल्मीकि का श्रीराम पर अधिकार है तो हम दलितों का क्यों नही ?
जरा सोचिये : कालनेमि ने साधु वेश धड़के हनुमान जी को भटकाना चाहा | आज यहाँ बहुत कालनेमि हमें हिन्दू और भारतीय होने के ढोंग कर रहे है | अपने आप को ज्यादा पीड़ित बता रहे है | ये कालनेमि वही है जिसने १४०० साल में किताब के कारन २० करोड़ से अधिक लोगो का गला रेता है |
विचार कीजिये : कलियुग में इतना मार काट और अशांति कौन सा धर्म फैला रहा है | अब आपको जवाब मिल गया होगा की कलियुग का धर्म कौन सा है | जिस अधर्म  ने १४०० साल में २० करोड़ लोगो को हलाल किया | इतना ही लोगो को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया | हर जगह अशांति, अधर्म, असंतुष्ट भटकती मानवता, बिलखते बच्चे और दया धर्म केवल पब्लिसिटी का माध्यम बन गया है | सारे अनैतिक आचरण को धर्म का चोला पहनाया |

जय कल्कि | श्री कल्कि | कल्कि कल्कि हरे हरे |

मनुवाद और ब्राह्मण वाद जन्म और अंत

मध्य काल में जब वेद विद्या का लोप होने लगा था, उस काल में ब्राह्मण व्यक्ति अपने गुणों से नहीं अपितु अपने जन्म से समझा जाने लगा था, उस काल में जब शुद्र को नीचा समझा जाने लगा था, उस काल में जब 
वेदों में शूद्र नाम की कोई जाति या समुदाय नही है जिससे भेदभाव बरता जाए |
नारी को नरक का द्वार समझा जाने लगा था, उस काल में मनुस्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं।
मनुवाद का जन्म आज से २८०० साल पहले हुआ और जिसका अंत भगवान् गौतम बुद्ध ने लगभग २५०० साल पहले किया | मनुस्मृति और ब्राह्मणवाद का कालखंड लगभग ३०० साल का था | इसके बाद  अनेक धर्म का अभ्युदय हुआ | बौद्ध ,जैन कबीर ,सिख| मनुवाद का जन्म मानव मात्र को धर्म से विमुख करने के लिए हुआ था | जिससे कलियुग अपना विस्तार कर सके | भारत में मनुवाद के कारन हिन्दू चार भाग में विभाजित हुआ | जिसमे पूजा करने का हक़ कुछ तथाकथित ब्राह्मण को दिया गया | जिसमे क्षत्रिय वैस्य शुद्र से पूजा करने का अधिकार छिन लिया | जिससे धर्म की बहुत हानि हुई |

वेद पुराण में जड़ चेतन को भगवान का अंश बताया गया है | भगवान सभी सजीव - निर्जीव में विद्यमान है  | अतः भगवान का पूजा का हक़ हाथी को हो सकता है तो मनुस्य को क्यों नही |मनुवाद के नाम मुगलो ने २० करोड़ से अधिक हिन्दुओ का धर्मान्तरण करवाया | उसके बाद अंग्रेजो ने क्षत्रियो को दलित और गुलाम बनाया |
कांग्रेस ने एक दलित, महादलित, पिछड़ा और अतिपिछड़ा के नाम से राजनीती चमकाई | मार्क्सवादी और उनके बुद्धिजीवियों ने माओवाद और नक्सलवाद पैदा करवाया |
पूर्वोत्तर (बंगाल, असम ...) और दक्षिणी भारत के राज्यों में विद्रोह और अलगाव पैदा कर लगभग हिन्दू मुक्त करवाया | मनुवाद का नाम ले ले कर माओवाद और नक्सलवाद को मार्क्सवादी पार्टी ने १५ से २० राज्यों में अलगाववाद पैदा किया है | जबकि यही बुद्धिजीवी ने पशिम बंगाल पर ३५ साल से अधिक शासन किया लेकिन किसी मज़दूर या दलित का भला नही किया सिर्फ राजनीती चमकाई |दलितों को धर्मान्तरण करवाया या उग्रवादी का ठप्पा लगाके मौत दिया | यह धर्मान्तरण और उग्रवाद का घिनोना खेल अभी भी जारी है |
समाज में झूठी इतिहास पढ़ा नफरत के बीज बोया जा रहा है | मूलनिवासी के नाम पर बहुजन का भटका कर राजनीती चमकाया जा रहा है | जो हिन्दू १०,००० साल से ज्यादा समय से भारत में रहता है विदेशी कह कर समाज में द्वेष और घृणा का जहर घोल जा रहा है|


अतः सभी मनुस्य का परम कर्तव्य है की भगवान का नाम स्मरण करे | कलियुग केवल नाम अधारा | भगवान श्री हरि का नाम स्मरण मात्र से हम अर्थ धर्म काम मोक्ष के अधिकारी हो जाते है | इसमें न तो ज्ञान की आवस्यकता है न प्रपंच कि | न मंदिर कि न पूजन सामग्री कि |

हरि ॐ तत्सत | जय श्री राम | ॐ नमः शिवाय |

सत्य और शांति की आवाज

सत्य और शांति की आवाज

हम सनातन धर्मी ( हिन्दू ) को मुग़ल, अंग्रेज और कांग्रेस की बनायी जाति ( बहुजन, दलित, शोषित, पीड़ित, नीच, बहुजन, मूलनिवासी,शुद्र, वैस्य,ब्राह्मण,क्षत्रिय ) मत कहना । 
हिन्दू के बहुजन समाज (पिछड़ा, अति पिछड़ा, अन्य पिछड़ा, दलित और महादलित ) को सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहा हूँ |
स्रोत्र : मैं अपना विचार विभिन्न हिन्दू धर्म ग्रंथो (वेद , पुराण , उपनिषद् ,गीता) और इतिहास अध्ययन के बाद रखता हूँ |
विशेष : मनुस्मृति, विदुरनीति, अर्थशास्त्र, चाणक्य नीति, पाणिनि, आर्यभट का गणित, कामसूत्र, शुसूत्र संहिता हिन्दू का धार्मिक ग्रन्थ नहीं है |
चेतावनी : मेरा विचार अलगावादी, उग्रवादी और राजनितिक विचारधारा जो सत्ता के लिए हिन्दू समाज में ऊंच-नीच की खायी बनाने वालो को पसंद नही आएगा | मै आयना आपके सामने रखता हूँ |
मै १००० बर्षो की गुलामी के बाद भारतीय मस्तिष्क मे फैले वैमनस्य की धुल को हटाने आया हूँ | मै सत्य और शांति की आवाज हूँ |

प्रमुख क्षत्रिय वर्ण/जाति

प्रमुख क्षत्रिय वर्ण/जाति
राजपूत, यादव, जाट, मौर्य, बुंदेल, चंवरवंश (चमार), लापासरी, मल्ल (कुलनाम), गिरनार, हजारिका, कायस्थ, कलिता, गुर्जर, गुर्जरत्रा, सैंथवार वंश, सीरवी, खाप, कटवाल, जाट, अहीर, आभीर, सुनार वर्मा, दतिया, नायर, कलवार, काछी, कुशवाह, बुंदेल, चंवरवंश (चमार), लापासरी, मल्ल (कुलनाम), गिरनार, हजारिका, कायस्थ, कलिता, गुर्जर, गुर्जरत्रा, सैंथवार वंश, सीरवी, खाप, कटवाल, पटेल, पाटीदार समाज, अहीर, आभीर, सुनार वर्मा, दतिया, नायर, कलवार, काछी, कुशवाह
विशेष :इतिहास और धर्मग्रंथो के अध्धयन के बाद तथ्य निष्पक्ष भाव से आपके सामने रख रहा हूँ | किसी जाति या धर्म की हित या अनहित करना मेरा उद्देस्य नहि है

मनुवाद और ब्राह्मणवाद हिन्दू धर्म का पतन का कारण

जय श्री गणेश !

वेदों और पुराणों में कही भी मानव में भेदभाव नही है | वेद पुराण में जड़ चेतन को भगवान का अंश बताया गया है | 
वेदों में शूद्र का अर्थ कोई ऐसी जाति या समुदाय नही है जिससे भेदभाव बरता जाए |
मनुवाद का जन्म आज से २८०० साल पहले हुआ और जिसका अंत भगवान् गौतम बुद्ध ने लगभग २५०० साल पहले किया | मनुस्मृति और ब्राह्मणवाद का कालखंड लगभग ३०० साल का था
वेदों में शूद्रों के विषय में कथन
1. तपसे शुद्रम- यजुर्वेद 30/5
अर्थात- बहुत परिश्रमी ,कठिन कार्य करने वाला ,साहसी और परम उद्योगों अर्थात तप को करने वाले आदि पुरुष का नाम शुद्र हैं।
2. नमो निशादेभ्य – यजुर्वेद 16/27
अर्थात- शिल्प-कारीगरी विद्या से युक्त जो परिश्रमी जन (शुद्र/निषाद) हैं उनको नमस्कार अर्थात उनका सत्कार करे।
3. वारिवस्कृतायौषधिनाम पतये नमो- यजुर्वेद 16/19
अर्थात- वारिवस्कृताय अर्थात सेवन करने हारे भृत्य का (नम) सत्कार करो।
4. रुचं शुद्रेषु- यजुर्वेद 18/48
अर्थात- जैसे ईश्वर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र से एक समान प्रीति करता हैं वैसे ही विद्वान लोग भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र से एक समान प्रीति करे।
5. पञ्च जना मम – ऋग्वेद
अर्थात पांचों के मनुष्य (ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र एवं अतिशूद्र निषाद) मेरे यज्ञ को प्रीतिपूर्वक सेवें। पृथ्वी पर जितने मनुष्य हैं वे सब ही यज्ञ करें।
इसी प्रकार के अनेक प्रमाण शुद्र के तप करने के, सत्कार करने के, यज्ञ करने के वेदों में मिलते हैं।
वाल्मीकि रामायण से शुद्र के उपासना से महान बनने के प्रमाण
मुनि वाल्मीकि जी कहते हैं की इस रामायण के पढ़ने से ()स्वाध्याय से ) ब्राह्मण बड़ा सुवक्ता ऋषि होगा, क्षत्रिय भूपति होगा, वैश्य अच्छा लाभ प्राप्त करेगा और शुद्र महान होगा। रामायण में चारों वर्णों के समान अधिकार देखते हैं देखते हैं। -सन्दर्भ- प्रथम अध्याय अंतिम श्लोक
इसके अतिरिक्त अयोध्या कांड अध्याय 63 श्लोक 50-51 तथा अध्याय 64 श्लोक 32-33 में रामायण को श्रवण करने का वैश्यों और शूद्रों दोनों के समान अधिकार का वर्णन हैं।
महाभारत से शुद्र के उपासना से महान बनने के प्रमाण
श्री कृष्ण जी कहते हैं –
हे पार्थ ! जो पापयोनि स्त्रिया , वैश्य और शुद्र हैं यह भी मेरी उपासना कर परमगति को प्राप्त होते हैं। गीता 9/32
उपनिषद् से शुद्र के उपासना से महान बनने के प्रमाण
यह शुद्र वर्ण पूषण अर्थात पोषण करने वाला हैं और साक्षात् इस पृथ्वी के समान हैं क्यूंकि जैसे यह पृथ्वी सबका भरण -पोषण करती हैं वैसे शुद्र भी सबका भरण-पोषण करता हैं। सन्दर्भ- बृहदारण्यक उपनिषद् 1/4/13
व्यक्ति गुणों से शुद्र अथवा ब्राह्मण होता हैं नाकि जन्म गृह से।
सत्यकाम जाबाल जब गौतम गोत्री हारिद्रुमत मुनि के पास शिक्षार्थी होकर पहुँचा तो मुनि ने उसका गोत्र पूछा। उन्होंने उत्तर दिया था की युवास्था में मैं अनेक व्यक्तियों की सेवा करती रही। उसी समय तेरा जन्म हुआ, इसलिए मैं नहीं जानती की तेरा गोत्र क्या हैं। मेरा नाम सत्यकाम हैं। इस पर मुनि ने कहा- जो ब्राह्मण न हो वह ऐसी सत्य बात नहीं कर सकता। सन्दर्भ- छान्दोग्य उपनिषद् 3/4
महाभारत में यक्ष -युधिष्ठिर संवाद 313/108-109 में युधिष्ठिर के अनुसार व्यक्ति कूल, स्वाध्याय व ज्ञान से द्विज नहीं बनता अपितु केवल आचरण से बनता हैं।
कर्ण ने सूत पुत्र होने के कारण स्वयंवर में अयोग्य ठह राये जाने पर कहा था- जन्म देना तो ईश्वर अधीन हैं, परन्तु पुरुषार्थ के द्वारा कुछ का कुछ बन जाना मनुष्य के वश में हैं।
आपस्तम्ब धर्म सूत्र 2/5/11/10-11 – जिस प्रकार धर्म आचरण से निकृष्ट वर्ण अपने से उत्तम उत्तम वर्ण को प्राप्त होता हैं जिसके वह योग्य हो। इसी प्रकार अधर्म आचरण से उत्तम वर्ण वाला मनुष्य अपने से नीचे वर्ण को प्राप्त होता हैं।
जो शुद्र कूल में उत्पन्न होके ब्राह्मण के गुण -कर्म- स्वभाव वाला हो वह ब्राह्मण बन जाता हैं उसी प्रकार ब्राह्मण कूल में उत्पन्न होकर भी जिसके गुण-कर्म-स्वाभाव शुद्र के सदृश हों वह शुद्र हो जाता हैं- मनु 10/65
चारों वेदों का विद्वान , किन्तु चरित्रहीन ब्राह्मण शुद्र से निकृष्ट होता हैं, अग्निहोत्र करने वाला जितेन्द्रिय ही ब्राह्मण कहलाता हैं- महाभारत वन पर्व 313/111
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र सभी तपस्या के द्वारा स्वर्ग प्राप्त करते हैं।महाभारत अनुगीता पर्व 91/37
सत्य,दान, क्षमा, शील अनृशंसता, तप और दया जिसमें हो वह ब्राह्मण हैं और जिसमें यह न हों वह शुद्र होता हैं। वन पर्व 180/21-26

पहले कलियुग ने प्रपंच के तहत मनु स्मृति (मानव शास्त्र ) और विभिन्न स्मृति की रचना करवाई वेदों और पुराणों की गलत व्याख्या किया | मनु स्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं। जिससे ब्राह्मणवाद का जन्म हुआ | ईश्वर ने सबको मानव बनाया | इन तथाकधित ग्रंथो ने समाज के एक बड़े हिस्से को धर्म से दूर किया | इस प्रपंच में धर्म की गलत व्याख्या और तर्क रखे गए | मानव मात्र में भेद किया गया |
ब्राह्मण को सर्वोपरि बताया गया | जिससे समाज में असंतोष और धर्म से अलगाव पैदा हुआ | कलियुग का मार्ग आसान और प्रसस्त हुआ | 
मनुवाद का जन्म आज से २८०० साल पहले हुआ और जिसका अंत भगवान् गौतम बुद्ध ने लगभग २५०० साल पहले किया | मनुस्मृति और ब्राह्मणवाद का कालखंड लगभग ३०० साल का था | इसके बाद  अनेक धर्म का अभ्युदय हुआ | बौद्ध ,जैन कबीर ,सिख| मनुवाद का जन्म मानव मात्र को धर्म से विमुख करने के लिए हुआ था | जिससे कलियुग अपना विस्तार कर सके | भारत में मनुवाद के कारन हिन्दू चार भाग में कर्म के हिसाब से विभाजित हुआ | जिसमे पूजा करने का हक़ कुछ तथाकथित ब्राह्मण को दिया गया | जिसमे क्षत्रिय वैस्य शुद्र से पूजा करने का अधिकार छिन लिया | जिससे धर्म की बहुत हानि हुई |
वेद पुराण में जड़ चेतन को भगवान का अंश बताया गया है | भगवान सभी सजीव - निर्जीव में विद्यमान है  | अतः भगवान का पूजा का हक़ हाथी को हो सकता है तो मनुस्य को क्यों नही |
अतः सभी मनुस्य का परम कर्तव्य है की भगवान का नाम स्मरण करे | कलियुग केवल नाम अधारा | भगवान श्री हरि का नाम स्मरण मात्र से हम अर्थ धर्म काम मोक्ष के अधिकारी हो जाते है | इसमें न तो ज्ञान की आवस्यकता है न प्रपंच कि | न मंदिर कि न पूजन सामग्री कि |
हरि ॐ तत्सत | जय श्री राम | ॐ नमः शिवाय 

SANT RAVIDAS : Hari in everything, everything in Hari

For him who knows Hari and the sense of self, no other testimony is needed: the knower is absorbed. हरि सब में व्याप्त है, सब हरि में...

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चेतावनी : मै किसी धर्म, पार्टी, सम्प्रदाय का विरोध या सहयोग करने नही आया हूँ | मै सिर्फ १५,००० बर्ष की सच्ची इतिहास अध्ययन के बाद रखता हूँ | हिन्दू एक ही पूर्वज के संतान है | भविस्य पुराण के अनुसार राजा भोज ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कार्य का बंटवारा किया था | जिसके अनुसार कोई भी अपने योगयता के अनुसार कार्य कर सकता था | कोई भी कोई कार्य चुन सकता था | पूजा करना , सैनिक बनना,खाना बनाना,व्यापार करना ,पशु पालना, खेती करना इत्यादि | ये कालांतर में जाति का रूप लेता गया | हिन्दू के बहुजन समाज (पिछड़ा, अति पिछड़ा, अन्य पिछड़ा, दलित और महादलित ) को सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहा हूँ | योगयता और मेहनत ही उन्नति का साधन है | एक कटु सत्य : यह हैं की मध्य काल में जब वेद विद्या का लोप होने लगा था, उस काल में ब्राह्मण व्यक्ति अपने गुणों से नहीं अपितु अपने जन्म से समझा जाने लगा था, उस काल में जब शुद्र को नीचा समझा जाने लगा था, उस काल में जब नारी को नरक का द्वार समझा जाने लगा था, उस काल में मनु स्मृति में भी वेद विरोधी और जातिवाद का पोषण करने वाले श्लोकों को मिला दिया गया था,उस काल में वाल्मीकि रामायण में भी अशुद्ध पाठ को मिला दिया गया था जिसका नाम उत्तर कांड हैं। जो धर्म सृष्टि के आरम्भ के पहले और प्रलय के बाद भी रहे उसे सनातन धर्म कहते है | सनातन धर्म का आदि और अंत नही है | नया सवेरा