देव देव दरबार दुवारै, रांम रांम रैदास पुकारै
हम दलितों के पास खोने के लिए क्या बचा एक धर्म जिसके लिए हमारे कितनी पीढ़ी तबाह हो गए | हमने घर - बार सब कुछ खो दिया | हमने एक धर्म ही हमारे पास है | अगर उसे भी हमने खो दिया तो हमारे पास क्या रहेगा? हम राम के है राम हमारे है | अगर उस समय छुआ - छूत होता तो वाल्मीकि मुनि के आश्रम में सीता नही जाती और लव - कुश का गुरु वाल्मीकि जी नही होते |
हम कोई कायर नही जो धर्म खो दे | जिस धर्म के लिए मैंने सदियों संघर्ष किया | हमारे पूर्वज वाल्मीकि रविदास मेही दास सदगुरु का ज्ञान बचा | अब हमें इसे नही खोना |
हमारे पूर्वज हिन्दू ही थे | सारे हिन्दू मूलनिवासी है | अगर हम दलित महादलित हिन्दू नही होते तो हमारे पूर्वज संत वाल्मीकि और संत रविदास श्रीराम के गुरु नही होते | भगवान वाल्मीकि हिन्दू ही थे | कोई अछूत नही है | सब जीव परमात्मा का अंश है |
भाव में भगवान बस्ते है |
मन चंगा कठौती में गंगा |
जो तुम तोरौ रांम मैं नहीं तोरौं।
तुम सौं तोरि कवन सूँ जोरौं।। टेक।।
तीरथ ब्रत का न करौं अंदेसा, तुम्हारे चरन कवल का भरोसा।।१।।
जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ तुम्हारी पूजा, तुम्ह सा देव अवर नहीं दूजा।।२।।
मैं हरि प्रीति सबनि सूँ तोरी, सब स्यौं तोरि तुम्हैं स्यूँ जोरी।।३।।
सब परहरि मैं तुम्हारी आसा, मन क्रम वचन कहै रैदासा।।४।।
त्राहि त्राहि त्रिभवन पति पावन।
अतिसै सूल सकल बलि जांवन।। टेक।।
कांम क्रोध लंपट मन मोर, कैसैं भजन करौं रांम तोर।।१।।
विषम विष्याधि बिहंडनकारी, असरन सरन सरन भौ हारी।।२।।
देव देव दरबार दुवारै, रांम रांम रैदास पुकारै।।३।।
हम दलितों के पास खोने के लिए क्या बचा एक धर्म जिसके लिए हमारे कितनी पीढ़ी तबाह हो गए | हमने घर - बार सब कुछ खो दिया | हमने एक धर्म ही हमारे पास है | अगर उसे भी हमने खो दिया तो हमारे पास क्या रहेगा? हम राम के है राम हमारे है | अगर उस समय छुआ - छूत होता तो वाल्मीकि मुनि के आश्रम में सीता नही जाती और लव - कुश का गुरु वाल्मीकि जी नही होते |
हम कोई कायर नही जो धर्म खो दे | जिस धर्म के लिए मैंने सदियों संघर्ष किया | हमारे पूर्वज वाल्मीकि रविदास मेही दास सदगुरु का ज्ञान बचा | अब हमें इसे नही खोना |
हमारे पूर्वज हिन्दू ही थे | सारे हिन्दू मूलनिवासी है | अगर हम दलित महादलित हिन्दू नही होते तो हमारे पूर्वज संत वाल्मीकि और संत रविदास श्रीराम के गुरु नही होते | भगवान वाल्मीकि हिन्दू ही थे | कोई अछूत नही है | सब जीव परमात्मा का अंश है |
भाव में भगवान बस्ते है |
मन चंगा कठौती में गंगा |
जो तुम तोरौ रांम मैं नहीं तोरौं।
तुम सौं तोरि कवन सूँ जोरौं।। टेक।।
तीरथ ब्रत का न करौं अंदेसा, तुम्हारे चरन कवल का भरोसा।।१।।
जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ तुम्हारी पूजा, तुम्ह सा देव अवर नहीं दूजा।।२।।
मैं हरि प्रीति सबनि सूँ तोरी, सब स्यौं तोरि तुम्हैं स्यूँ जोरी।।३।।
सब परहरि मैं तुम्हारी आसा, मन क्रम वचन कहै रैदासा।।४।।
त्राहि त्राहि त्रिभवन पति पावन।
अतिसै सूल सकल बलि जांवन।। टेक।।
कांम क्रोध लंपट मन मोर, कैसैं भजन करौं रांम तोर।।१।।
विषम विष्याधि बिहंडनकारी, असरन सरन सरन भौ हारी।।२।।
देव देव दरबार दुवारै, रांम रांम रैदास पुकारै।।३।।