मार्क्सवाद की राजनीती का आधार वर्ग संघर्ष होता है | (विकिपीडिया)
मार्क्सवाद मानव सभ्यता और समाज को हमेशा से दो वर्गों -शोषक और शोषित- में विभाजित मानता है। माना जाता है साधन संपन्न वर्ग ने हमेशा से उत्पादन के संसाधनों पर अपना अधिकार रखने की कोशिश की तथा बुर्जुआ विचारधारा की आड़ में एक वर्ग को लगातार वंचित बनाकर रखा। शोषित वर्ग को इस षडयंत्र का भान होते ही वर्ग संघर्ष की ज़मीन तैयार हो जाती है। वर्गहीन समाज (साम्यवाद) की स्थापना के लिए वर्ग संघर्ष एक अनिवार्य और निवारणात्मक प्रक्रिया है। (विकिपीडिया)
माक्र्स दो मापदण्डों के आधार पर एक वर्ग को दूसरे से अलग करता हैः उत्पादन के साधनों का स्वामित्व एवं दूसरों की श्रम शक्ति पर नियंत्रण। इससे, वह बताता है कि आधुनिक समाज में तीन विशिष्ट वर्ग हैंः 1. पूंजीवाद या बुर्जुआ उत्पादन के साधनों के स्वामी हैं और वे दूसरों की श्रम शक्ति को खरीदते हैं|
2. मजदूर या साधारण जन, जिनके पास उत्पादन का कोई साधन या दूसरों की श्रम शक्ति को खरीदने की क्षमता नहीं है। इसकी बजाय, वे स्वयं की श्रम शक्ति को बेचते हैं |
3. छोटे बुर्जुआ के रूप में जाना जाने वाला एक छोटा, परिवर्तनशील वर्ग जिनके पास उत्पादन के पर्याप्त साधन हैं लेकिन वे श्रम शक्ति को नहीं खरीदते हैं। माक्र्स का साम्यवादी घोषणापत्र छोटे बुर्जुआ को “छोटे पूंजीवादियों” से आगे परिभाषित करने में असफल हो जाता है। (विकिपीडिया)
भारत और मार्क्सवाद कम्युनिस्ट राजनीती का आधार
मार्क्सवादी हमेशा बहुजन वर्ग को शोषित बता कर अपना राजनितिक सफर जारी रखते है | बहुजन का समर्थन प्राप्त कर सत्ता प्राप्त करना इनका मकसद होता है | सत्ता हासिल करने के बाद जनता में उच्च वर्ग को सत्ता का धुरी बनाते है | बुद्धदेव भट्टाचार्य, ज्योति बसु इत्यादि का पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनना इनके उदहारण है | या तथाकथित शोषित वर्ग को मुखिया रख सत्ता का शक्ति हमेशा दूसरे वर्ग के पास ही होता है | शोषित वर्ग को शोषित ही रखा जाता है | चीन, रूस, बेलारूस,ब्राज़ील, वियतनाम, भारत इत्यादि देशो में ये पार्टी है | भारत में पस्चिम बंगाल असम केरल इत्यादि राज्य इनके उदहारण है | वैदिक भारत में इसप्रकार जाति का कोई संघर्ष नही था | कालांतर में में भारत में हिन्दू सद्भावना बढ़ने के कारन वर्ग संघर्ष का लगभग अंत दिख रहा है | भारत में वर्गसंघर्ष का कुछ भी वजह दिख नही रहा है | फिर भी मार्क्सवादी विचारधारा के पास एक मुद्दा है | मार्क्सवादी लोग समाज में कुछ न कुछ वर्ग संघर्ष का कारन ढूढ़ ही लेते है | मूलनिवासी और विदेशी मुद्दा | उच्च वर्ग और निम्न वर्ग इसप्रकार ये हमेशा द्वन्द की स्थिति लाते है | कुछ सच और कुछ झूठ कारन कर समाज में दो वर्ग करना और बड़े वर्ग का अपने पक्ष में करना और दूसरे पक्ष की सहायता से सत्ता चलाना |
इनके पास एक मुद्दा है जिसे वो बहुत दिनों से भुना रहे है | असली वैदिक संस्कृत मनुस्मृति जिसमे ६३० श्लोक थे | १०,००० बर्ष पूर्व लिखा गया था | मनुस्मृति में लगभग १८०० श्लोक जोड़ कर २८०० बर्ष पूर्व विकृत किया गया था | इस नकली मनुस्मृति में ब्राह्मणों को उच्च, शुद्रो और स्त्री को नीच कहा गया था | इसके बाद भगवन बुद्ध ने २५०० बर्ष पूर्व इसका अंत किया था | शंकराचार्य ने धर्म का पुनरुद्धार किया था | इस आधार पर एक दलित शोषित वर्ग का आधार मिला है | इस तथाकथित मुद्दे को कभी ऐतिहासिक , वैज्ञानिक कारन बता कर समाज में दुरी बनाये रखना इन कम्युनिस्ट पार्टी की विवसता है | भारत में हिन्दू सबसे बड़ा सम्प्रदाय है | इनके एक बड़े समुदाय को मूलनिवासी और दूसरे समुदाय को विदेशी घोषित करना सिर्फ और सिर्फ द्वन्द को जीवित रखना ही इनका राजनितिक मूल है | मार्क्सवादी राजनीती को बारीकी से समझे तो आपको कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवाद, लालू, नितीश, केजरीवाल, मुलायम, मायावती इत्यादि नजर आएंगे |
जो समाज में हमेशा दो वर्ग दिखाते है | प्रथम शोषित वर्ग : एक दलित, महादलित, बहुजन, पिछड़ा, अतिपिछड़ा, अन्य पिछड़ा वर्ग दूसरा वर्ग : सवर्ण और उच्च वर्ग |मजदूर - व्यापारी | बहुजन - उच्च वर्ग | गरीब - आमिर | दलित और शोषक | छूत - अछूत | आम - खास | जनता और शासक | क्षेत्रीयता - अस्मिता | इससे इनका काम हो जाता है | समाज को दो वर्गों में विभाजन कर राजनीती करना मार्क्सवाद का मूल सिद्धांत है जिसे मैंने ऊपर में बताया है | आप विकिपीडिया ज्यादा जानकारी के लिए पढ़े |
भारत में मार्क्सवादी राजनीती का परिणाम |
मार्क्सवादी विचारधारा ने समाज में असंतोष का वातावरण पैदा किया | मजदूर के समर्थन में कई कंपनी को बंद किया | जिससे गरीबी, बेरोजगारी इससे समाज में असंतोष बढ़ती गयी | समाज को दो वर्गों में विभाजन कायम रखना ही मार्क्सवाद कम्युनिस्ट पार्टी का लक्ष्य होता है | ब्राह्मणवाद को कायम रखना ही इनके अस्तित्व को बचा पायेगा | बहुजन वर्ग और उच्च वर्ग जिससे ये समाज बनता गया | दोनों वर्गों में मनोविज्ञानिक बौद्धिक तरीके से ये विचार कायम कर दिया गया है | एक वर्ग अपने आप को सामाजिक रूप से ऊंच समझने लगे है | ये तथाकथित उच्च जाति के वर्ग के लोग आर्थिक और शैक्षणिक रूप से कमजोर क्यों न हो अपने आप को बड़ा और सर्वोपरि समझने लगे है | दूसरा वर्ग आर्थिक और शैक्षणिक रूप से कितना भी मजबूत क्यों न हो अपने आप कोशोषित और नीच समझने लगे है | यही मानसिकता इन कम्युनिस्ट पार्टी का राजनितिक आधार होता है |
मार्क्सवाद और बहुजन युवा
मनुवाद और ब्राह्मण वाद का झूठ जहर जो वोट के लिए बहुजन वर्ग के युवा को भरा जाता है | इसके जहर पीने के बाद युवा उग्र बन जाते है | उन्हें पता ही नही रहता की वो राजनितिक शिकार हो गए है | वो २८०० साल के जुल्म की बदला लेने की आग में जलने लगते है | झूठी कहानी को ही सच समझ लेते है | मार्क्सवादी बुद्धिजीवी की विचार में उलझ जाते है | उनकी अपरिपक्वता का फायदा उठाकर धार्मिक संगठन धर्म परिवर्तन करवा देते है | या ये किसी उग्रवादी संगठन के हाथो का खिलौना बन जाते है | ये सेना के डर से समाज से भागने के लिए मजबूर हो जाते है | कभी कभी ये उग्रवाद के कारन बड़ी जनहानि का जिम्मेवार या पोलिश /आर्मी की गोली का शिकार भी बनते है | समाज के लिए खतरा भी बनते है |
मनुवाद नाम का जहर सिर्फ मार्क्सवादी बुद्धिजीवी वर्ग सिर्फ सत्ता के लिए करते है लेकिन उसका परिणाम शायद मार्क्सवादी को भी पता नही होगा |
मार्क्सवाद, उग्रवाद और अलगावाद
भारतीय समाज में वर्ग संघर्ष के कारन युवा के भटकाव होने के बाद या तो धर्म परिवर्तन या ये तथाकथित उच्चवर्ग (भले ही आर्थिक शारीरिक मानसिक रूप से पिछड़े क्यों न हो ) का विरोध करने के लिए हथियार उठाते है | जिससे इनकी गिनती उग्रवाद में होती है | जिसका परिणाम आप १५ से २० उग्रवाद प्रभावित राज्यो में देखसकते है | कुछ युवा बाहरी शक्ति के साथ मिलकर देश में अलगाववाद की बात करने लगते है | जिसे हम कश्मीर में देख रहे है |
हम समाज में द्वंद की बात का अगर विरोध करेंगे | जैसे ही कोई दो वर्ग की बात आये तो आप खुल कर विरोध करे और समझ जाएँ यहाँ मार्क्सवादी राजनीती हो रही है |
कार्ल मार्क्स का सिद्धान्त आप जानकारी के लिए पढ़ ले |