जिनमें ऋग्वेद से २ मंत्र ,मनुस्मृति के कुछ श्लोक तथा कुछ अन्य उद्धरण दिए गए हैं | जिसका एक उदाहरण यहाँ अवतार गिल की टिप्पणी है | इस बारे में मैं निम्न बातें कहना चाहूंगा —
a. लेख में प्रस्तुत मनुस्मृति के साक्ष्य में वध की अनुमति देने वाले तक को हत्यारा कहा गया है | अतः यह सभी अतिरिक्त श्लोक मनुस्मृति में प्रक्षेपित ( मिलावट किये गए) हैं या इनके अर्थ को बिगाड़ कर गलत रूप में प्रस्तुत किया गया है | मैं उन्हें डा. सुरेन्द्र कुमार द्वारा भाष्य की गयी मनुस्मृति पढ़ने की सलाह दूंगा |
b. प्राचीन साहित्य में गोमांस को सिद्ध करने के उनके अड़ियल रवैये के कपट का एक प्रतीक यह है कि वह मांस शब्द का अर्थ हमेशा मीट (गोश्त) के संदर्भ में ही लेते हैं | दरअसल, मांस शब्द की परिभाषा किसी भी गूदेदार वस्तु के रूप में की जाती है | मीट को मांस कहा जाता है क्योंकि वह गूदेदार होता है | इसी से, केवल मांस शब्द के प्रयोग को देखकर ही मीट नहीं समझा जा सकता |
c. उनके द्वारा प्रस्तुत अन्य उद्धरण संदेहास्पद एवं लचर हैं जो प्रमाण नहीं माने जा सकते | उनका तरीका बहुत आसान है – संस्कृत में लिखित किसी भी वचन को धर्म के रूप में प्रतिपादित करके मन माफ़िक अर्थ किये जाएं | इसी तरह, वे हमारी पाठ्य पुस्तकों में अनर्गल अपमानजनक दावों को भरकर मूर्ख बनाते आ रहें हैं |
d. वेदों से संबंधित जिन दो मंत्रों को प्रस्तुत कर वे गोमांस भक्षण को सिद्ध मान रहे हैं, आइए उनकी पड़ताल करें –
दावा:- ऋग्वेद (१०/८५/१३) कहता है -” कन्या के विवाह अवसर पर गाय और बैल का वध किया जाए | ”
तथ्य : – मंत्र में बताया गया है कि शीत ऋतु में मद्धिम हो चुकी सूर्य किरणें पुनः वसंत ऋतु में प्रखर हो जाती हैं | यहां सूर्य -किरणों के लिए प्रयुक्त शब्द ‘गो’ है, जिसका एक अर्थ ‘गाय’ भी होता है | और इसीलिए मंत्र का अर्थ करते समय सूर्य – किरणों के बजाये गाय को विषय रूप में लेकर भी किया जा सकता है | ‘मद्धिम’ को सूचित करने के लिए ‘हन्यते’ शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका मतलब हत्या भी हो सकता है | परन्तु यदि ऐसा मान भी लें, तब भी मंत्र की अगली पंक्ति (जिसका अनुवाद जानबूझ कर छोड़ा गया है) कहती है कि -वसंत ऋतु में वे अपने वास्तविक स्वरुप को पुनः प्राप्त होती हैं | भला सर्दियों में मारी गई गाय दोबारा वसंत ऋतु में पुष्ट कैसे हो सकती है ? इस से भली प्रकार सिद्ध हो रहा है कि ज्ञान से कोरे कम्युनिस्ट किस प्रकार वेदों के साथ पक्षपात कर कलंकित करते हैं |
दावा :- ऋग्वेद (६/१७/१) का कथन है, ” इन्द्र गाय, बछड़े, घोड़े और भैंस का मांस खाया करते थे |”
तथ्य :- मंत्र में वर्णन है कि प्रतिभाशाली विद्वान, यज्ञ की अग्नि को प्रज्वलित करने वाली समिधा की भांति विश्व को दीप्तिमान कर देते हैं | अवतार गिल और उनके मित्रों को इस में इन्द्र,गाय,बछड़ा, घोड़ा और भैंस कहां से मिल गए,यह मेरी समझ से बाहर है | संक्षेप में, मैं अपनी इस प्रतिज्ञा पर दृढ़ हूँ कि वेदों में गोमांस भक्षण का समर्थक एक भी मंत्र प्रमाणित करने पर मैं हर उस मार्ग को स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ जो मेरे लिए नियत किया जाएगा अन्यथा वे वेदों की ओर वापिस लौटें